महिलाओं के सोलाह शृंगार में एक शृंगार पायल भी है। इन शृंगारों में पायल की अहम भूमिका है। स्त्रियों के शृंगार में पायलों का वैदिककाल से ही विशेष स्थान रहा है। घुँघरूओं से सजी छम-छम करती ख़ूबसूरत पायलें हमेशा से ही स्त्री के पैरों की शोभा रही हैं। यहाँ तक कि कवियों ने भी पायलों की रुन-झुन व उसकी छम-छम के ऊपर अनेक कविताएँ रच डालीं।
हिन्दू समाज में एक ख़ास मान्यता यह भी है कि पायल सोने की नहीं बनवाई जाती है क्योंकि हिन्दू संस्कृति में सोने को देवताओं का आभूषण कहा जाता है इसीलिए सोने की पायल को पैरों में पहनना अपशगुन माना जाता है। यही कारण है कि पायल ज़्यादातर चाँदी की ही बनवाई जाती हैं और चाँदी की यह पायल लड़कियों और महिलाओं के पैरों की शोभा बढ़ाती हैं।
पायल पहनना महिलाओं के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना गया है। पायल पहनने का रिवाज हमारे देश में सदियों से है। आजकल यह रिवाज फैशन की दौड़ में भी आगे निकल गया है। इसीलिए बाज़ार में पायल के एक से बढ़कर एक डिज़ाइन मौजूद हैं।
स्त्री के पैरों की सुंदरता में पायल चार चांद लगा देती है पायल । स्त्रियों के सोलह श्रृंगार में पायल का भी ऍक महत्वपूर्ण स्थान है। आमतौर पर यही माना जाता है कि पायल स्त्रियों के लिए श्रृंगार की वस्तु है, लेकिन आप जानते नहि है इससे कई अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। पायल से प्राप्त होने वाले फायदों के विषय में काफी कम लोग जानते हैं।
पायल की धातु हमेशा पैरों से रगड़ाती रहती है जो स्त्रियों की हड्डियों के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद है। इससे उनके पैरों की हड्डी को मज़बूती मिलती है। साथ ही पायल पहनने से स्त्रियों का आकर्षण कहीं अधिक बढ़ जाता है।
प्राचीन समय से ही हर स्त्री के लिए पायल पहनना अनिवार्य परंपरा के रूप में प्रचलित है। कई घर-परिवार ऐसे हैं, जहां विवाह के बाद स्त्री को पायल के बिना घर से बाहर जाने की इजाजत भी नहीं दी जाती है। यहां जानिए इस प्राचीन परंपरा के पीछे कौन-कौन से कारण बताए गए हैं…
पायल पहनने के पीछे एक वजह यह है कि प्राचीन काल में महिलाओं को पायल एक विशेष संकेत के लिए पहनाई जाती थी। उस समय में जब घर के सभी सदस्य एक साथ बैठे होते थे, तब यदि पायल की छम-छम की आवाज आती थी तो सभी को अंदाजा हो जाता कि कोई महिला उनकी ओर आ रही है। जिससे सभी सदस्य व्यवस्थित रूप से आने वाली महिला का उचित स्वागत करने के लिए तैयार हो जाते थे।
पुराने समय में स्त्रियों को पति के घर में कहीं आने-जाने के लिए पूरी स्वतंत्रता नहीं रहती थी। साथ ही, वह किसी से खुलकर बात भी नहीं कर पाती थी। ऐसे में जब वह घर में कही आती-जाती तो बिना उसके बताए भी पायल की आवाज से सभी सदस्य समझ जाते थे कि उनकी बहु वहां आ रही है या कहीं जा रही है।
पायल की आवाज अन्य लोगों के लिए एक इशारा है, इसकी आवाज से सभी को यह एहसास हो जाता है कि कोई महिला उनके आसपास है, अत: ऐसी परिस्थिति में शालीन और सभ्य व्यवहार करना चाहिए। ताकि स्त्री के सामने किसी प्रकार की कोई अभद्रता ना हो जाए।
महिलाओं के सौंदर्य में चार चाँद लगाने वाली ये पायलें अब एक नये परिवर्तन के साथ फैशन में आ गई हैं। जहाँ पहले युवतियाँ पायलों को अपने दोनों पैरों में पहनती थीं, वहीं अब वे इसे जींस व कैप्री के साथ एक पैर में पहन रही हैं। पायल के चलन में कई तरह के परिवर्तन आए हैं। चाँदी के अलावा भी कई तरह की पायल इन दिनों बाज़ार में आ रही हैं, जैसे प्लास्टिक और वुडन पायल युवतियों के बीच ख़ासी लोकप्रिय हैं।
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