सौ दिन चले अढ़ाई कोस- राशन कार्ड जारी करने में मतदाता पहचान पत्र का फसा पेच

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Ration cardफर्रुखाबाद: अगर सरकारी राशन कार्डो के नए बनाये जाने की प्रक्रिया में बदलाव नहीं किया गया तो जनवरी 2014 में मिलने वाले कार्ड जनवरी 2015 में भी जनता को मिल जाए तो बड़ी बात होगी| एक साल बीत जाने के बाद भी अभी राशन कार्डो के जारी होने का कोई ओर छोर नहीं है| वैंडर धीमी गति से काम कर रहे है वहीँ राशन कार्डो के फार्मो में दर्ज किये मतदाता पहचान पत्र के नंबर भी खलल डाल रहे है|

जनता के हाथ में 9 साल पुराना फटा नुचा कार्ड ही बचा है-
उत्तर प्रदेश में सरकारे जनता के प्रति कितना समर्पित रही है इस बात का आंशिक अंदाजा लगाया जा सकता है| गरीब को पेट भरने के लिए राशन देने की सरकार की योजना में गरीब का कटोरा खाली का खाली है और उसके वितरण में भागीदार और जिम्मेदार सभी मालामाल है| लिहाजा जनता के हाथ में फटा नुचा राशन कार्ड बचा है| राशन तो कोटेदार, सरकारी कर्मचारी और नेता बड़ी ही बेशर्मी से हजम कर रहे है| वर्तमान में मौजूद जनता के पास कार्ड वर्ष 2005 में जारी किये गए थे| कार्ड में इतने पन्ने थे जो वर्ष 2010 तक चलते| इसके बाद नए कार्ड मिल जाने चाहिए थे| मगर 2014 बीत जाने के उपरान्त भी उत्तर प्रदेश में राशन कार्ड ही मिल जाए तो समझो गंगा नहा ली|

वर्ष 2005 से वर्ष 2014 तक तीन सरकारे बदल गयी| वर्ष 2005 में जब नए कार्ड जारी हुए थे तब समाजवादी पार्टी की सरकार थी| इसके बाद वर्ष 2007 में बहुजन समाज पार्टी की यानि की मायावती की सरकार आई| जिन्हे शायद पत्थर के बुतो को स्थापित करने से ही फुर्सत नहीं मिली, इंसान की कौन सोचता| वर्ष 2010 में मायावती की सरकार में निष्प्रयोज्य हो चुके राशन कार्डो की वैधता बढ़ाने की कवायद शुरू हुई| 2010 से 2012 तक 6-6 महीने की चार बार वैधता बढ़ाई गयी मगर बसपा सरकार ने नए राशन कार्डो को जारी करने के बारे में विचार तक नहीं किया| वर्ष 2012 में विधानसभा चुनाव हो गए बसपा गयी और सपा आ गयी| अखिलेश यादव के युवा नेतृत्व में बुजुर्गो की सरकार एक बार फिर से बन गयी| मगर जनता को नए राशन कार्ड नहीं मिल सके| वर्ष 2013 में खाद्य आयुक्त अर्चना अग्रवाल ने नए राशन कार्डो को जारी करने की कवायद शुरू करवाई मगर इसमें एक पेच फस गया जो आज तक फसा हुआ है|

राशन कार्डो के फार्मो पर दर्ज मतदाता पहचान पत्रो के नम्बर चुनाव आयोग के डेटाबेस से मेल नहीं खा रहे है-
एक सर्वे के अनुसार वैसे भी उत्तर प्रदेश में लगभग 20 फ़ीसदी राशन कार्ड फर्जी जो ज्यादातर कोटेदारों द्वारा घपले के लिए बनबाये गए है| नए राशन कार्डो को जारी करने की योजना बनाने वालो ने वलानुकूलित कमरो में बैठ कर जब योजना बनायीं तब तकनिकी और व्यवहारिक परेशानियों को दरकिनार कर दिया| वैसे उद्देश्य अच्छा था| पुराने राशन कार्डो को ऑनलाइन करने के बाद उनका प्रिंट निकाला गया और उनका सत्यापन कराने के लिए काम शुरू हुआ| इसी सत्यापन के साथ एक फॉर्म में कुछ अतिरिक्त जानकारिया जुटाई गयी| जिसमे एक जानकारी मतदाता पहचान पत्र के नम्बर की भी थी ताकि एक नम्बर से एक ही राशन कार्ड जारी हो सके| यही पर पेच फस गया| फॉर्म भरते समय हाथ से लिखे गए पहचान पत्र संख्या से लेकर डेटा फीडिंग तक गलतिया होने लगी| जब ये नम्बर चुनाव आयोग के डेटा बैंक से मैच कराये गए तो इसमें लगभग 25 से 30 प्रतिशत नंबर मेल नहीं खाए| लिहाजा राशन कार्डो को जारी करने का काम आधार में लटका हुआ है| वहीँ केंद्र सरकार पूरे देश में राशन कार्डो को राष्ट्रीय डेटाबेस से जोड़ने के आदेश पहले ही कर चुकी है| ऐसे में तकनिकी विभाग की सलाह की अनदेखी जनता के लिए परेशानी का सबब बानी हुई है|

सस्ते के चक्कर में वेंडर ने बर्बाद कर दिया डेटा-
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वैंडर ने भी घटिया काम किया| कुछ फर्मो ने कम दरो पर काम लेकर डेटा फीडिंग की खानापूर्ति करानी चाही मगर जब डेटाबेस का मिलान किया गया तो गलतिया निकलने लगी| सस्ते के चक्कर में जनता पिस गयी| कानपुर की एक फर्म जिसके पास कानपुर के साथ साथ फर्रुखाबाद का भी काम है तय मियाद के 6 महीने बीत जाने के बाद भी पचास पतिशत काम पूरा नहीं कर पायी है| सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार फर्म को 50 से 60 फ़ीसदी भुगतान कर दिया गया है| फिर भी काम आधा तक नहीं हुआ है| खबर है कि कानपुर में फर्म के खिलाफ कार्यवाही शुरू हो गयी है| मगर इस सबसे जनता को तो कोई फायदा नहीं होने वाला| जनता के हाथ में नया राशन कार्ड कब आएगा कोई नहीं बताने वाला| न सरकार के अफसर और न ही नेता मंत्री| हर सवाल पर एक ही जबाब काम चल रहा है|
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