डेस्क: प्रदेश के करीब पौने दो लाख शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने के मामले में शिक्षामित्रों को फिलहाल राहत मिल गई है। हाईकोर्ट ने समायोजन के विरुद्ध दाखिल याचिका पर जवाब दाखिल करने की समय अवधि तीन सप्ताह तक के लिए बढ़ा दी।
कोर्ट ने समायोजन पर रोक लगाने की मांग को स्वीकार नहीं किया मगर यह साफ किया है कि यदि नियुक्तियां की जाती हैं तो याचिका पर हुए अंतिम निर्णय के अधीन होंगी।
शिक्षामित्रों ने भी दाखिल की अर्जी
याचिका पर सुनवाई के लिए 14 जुलाई की तिथि निर्धारित की गई है। याचिका में शिक्षामित्रों के समायोजन हेतु जारी सात फरवरी 2014 के आदेश पर रोक लगाने तथा उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा (19 वां संशोधन) नियमावली 2014 और निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (प्रथम संशोधन नियमावली) 2014 पर भी रोक लगाने की मांग की गई है।
शिक्षामित्रों की ओर से भी इस मामले में अपना पक्ष सुने जाने हेतु शामिल करने की अर्जी दी गई जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। याचिका पर न्यायमूर्ति पी के एस बघेल सुनवाई कर रहे हैं।
शिक्षामित्रों की पात्रता उठे सवाल
बीटीसी प्रशिक्षु शिवम राजन द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया कि जब एनसीटीई ने प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों के लिए न्यूनतम अर्हता (टीईटी) को अनिवार्य कर दिया है तो शिक्षामित्रों को टीईटी की अनिवार्यता में छूट देने का सरकार को अधिकार नहीं है।
प्रदेश सरकार द्वारा बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली में किया गया संशोधन भी गलत है। कहा गया कि शिक्षामित्र अध्यापक की परिभाषा में नहीं आते हैं। इनको मानदेय दिया जाता है।
यह मामला भी विराधीन
इसके अलावा शिक्षामित्रों को बीटीसी का प्रशिक्षण देने का मामला भी अभी हाईकोर्ट में विचाराधीन है। एकलपीठ ने पहले प्रशिक्षण पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ विशेष अपीलें दाखिल हुई जिसमें रोक को हटा लिया गया मगर कहा गया कि प्रशिक्षण का मामला एकल न्यायपीठ द्वारा याचिका के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा। इसके बावजूद प्रदेश सरकार ने सात फरवरी 2013 को शासनादेश जारी कर शिक्षामित्रों के समायोजन का निर्देश जारी कर दिया। कोर्ट ने प्रदेश सरकार के स्थायी अधिवक्ता रमेश उपाध्याय, एनसीटीई केवकील रिजवान अख्तर और शिक्षामित्रों के वकील आरके उपाध्याय, अभिषेक श्रीवास्तव को तीन सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
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