फर्रुखाबाद: देश के सबसे बड़े घोटालो में से एक खाद्य एवं वितरण प्रणाली में घोटाले का जबरदस्त विकेंद्रीकरण होता है| सरकारी सस्ते गल्ले की नियंत्रित दुकान में दुकान संचालक का कमीशन भले ही कम हो मगर डीएम से लेकर लेखपाल तक का और पत्रकार से लेकर निगरानी करने वाले पर्यवेक्षक तक का हिस्सा निकलने के बाद भी छोटे से छोटे कोटेदार को पचास हजार का मुनाफा प्रतिमाह होता है| आखिर कितना बड़ा भ्रष्टाचार होता है इस वितरण प्रणाली में एक बानगी देखिये|
प्रति माह खाद्य एवं आपूर्ति वाले विभाग के अंतर्गत इतनी बड़ी लूटमार होती है कि उसे रोक पाना इतना आसान नहीं जितना नए नए जिलाधिकारी आये एनकेएस चौहान ने जिले में पदार्पण करते ही मीडिया से दावा कर दिया था| जिलाधिकारी खाद्य एवं रसद विभाग के प्रमुख सचिव पद से जिलाधिकारी बन कर जिले में आये है| ऊपर का अध्ययन उन्हें था ही नीचे का अध्ययन भी उनके लिए जरुरी है| आखिर इस प्रणाली में कहाँ से सुधार शुरू हो और कैसे हो इस पर माथा पच्ची करने वाले भी इसी भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगाकर अपना हिस्सा वसूलने में ही भलाई समझते रहे|
जेएनआई के एक सूत्र पर्यवेक्षक को एक कोटेदार ने बताया कि किस कदर उसने लोकसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी की सभाओ में भीड़ के लिए गाड़ियों का इंतजाम किया था| नेताजी सत्ता में थे इसलिए उन्हें साधना जरुरी था| हर सत्ता के विधायक और मंत्री को साधना पड़ता है भले ही वो किसी भी पार्टी का हो| उसके बाद गोदाम से माल लाते समय काफी हिसाब किताब वहीँ पर हो जाता है| गेंहू, चावल, चीनी, मिटटी के तेल के खरीददार उन्हें तलाशने नहीं पड़ते इसका इंतजाम गोदाम मालिक/इंचार्ज कर देता है| जितना बाटना है उतना ही दुकान तक लाना होता है| बाकी का पैसा गोदाम से ही नगद मिल जाता है| इसमें जिले के बड़े राशन माफिया शामिल होते है| कई बार तो माल कानपुर/इटावा से ही गोदाम पर नहीं आता खाली हिसाब किताब आता जाता है|
चुनाव में फोटो खीचने के लिए कैमरों के नाम पर कोटेदारों से 5000-5000 वसूले गए थे-
शायद मुख्य चुनाव आयुक्त वी एस संपत ने ऐसे वसूली करके चुनाव सम्पन्न कराने के लिए नहीं कहा था| न ही ऐसा कोई आदेश आया फिर भी ऐसा हुआ| और अक्सर होता है| इससे पहले विधानसभा चुनावो में भी होता रहा है| फोटोग्राफी के लिए हर बूथ पर कैमरा रखने के लिए कोटेदारों से 5000-5000 रुपये वसूल कर एक साहब ने इक्क्ठे कराये थे| कोटेदार कह रहा था कि बूथ पर कैमरा तो दिखा नहीं अब रुपये पर सवाल किस्से पूछे| ज्यादा पूछताछ करे तो कोटे पर शामत बुला ले| यानि नेता से लेकर सरकारी अफसर और कर्मचारी इन कोटेदारों को ब्लैकमेल तो करता है मगर जनता को राशन बाॅटने के लिए कोई कोशिश नहीं करता|
500 रुपये नगद और 5 किलो चीनी में कोटेदार की ड्योढ़ी पर ईमान बेच आये सभी-
गोदाम पर हर माह के वितरण के बाद लगभग हर कोटेदार का स्टॉक शून्य हो जाता है| कुछ राशन हमेशा दुकान में रखा जाता है जो अगले माह के राशन में ओपनिंग स्टॉक दिखाने के लिए होता है| अब वितरण के दिन पझारूओं (पुराने ज़माने में कामगार तीज त्यौहार पर अपना नेग लेने आते थे उन्हें ही कहते है) की तरह सरकारी और गैर सरकारी निगरानी तंत्र कोटेदार के इर्द गिर्द मड़राने लगता है| इसमें अमीन, लेखपाल, पर्यवेक्षक के तौर पर नियुक्त मास्टर या किसी विभाग के कर्मचारी और कभी कभी पत्रकार भी होते है| 500 रुपये नगद और 5 किलो चीनी में ये सब अपना ईमान बेच कर कोटेदार के पक्ष में अपना मंतव्य बनाकर लौट आते है| ग्राम प्रधान का हिस्सा बड़ा होता है| ये कोटे के ऊपर निर्भर करता है| फिर भी छोटे से छोटे कोटे से 5000 रुपये से कम में प्रधान नहीं मानता| बड़े कोटे में ये धनराशि 20 से 25 हजार प्रतिमाह हो जाती है| ये सब वो मदे है जो कोटेदारों को हर माह देनी ही है|
विभागीय सत्यापन में रजिस्टर जाता है, अफसर या कर्मचारी नहीं आता-
हाँ विभागीय सत्यापन की तो बात रह ही गयी| ये सब तो बाहरी थे| अंदर की बात ये है कि सत्यापन करने के लिए विभाग के कर्मचारी कोटेदारों के यहाँ नहीं जाते, कोटेदारों के रजिस्टर जिला खाद्य एवं आपूर्ति कार्यालय से लेकर संबंधित सत्यापन अधिकारी के दफ्तर जाते है रिश्वत की रकम के साथ और स्टॉक सत्यापित हो जाता है| तीन दिन में 10 से 20 प्रतिशत राशन बाटने के बाद कोटेदार का स्टॉक एक बार फिर से शून्य हो जाता है| पर्यवेक्षक अपनी रिपोर्ट में राशन वितरण की सही सही रिपोर्ट देने की जगह सब कुछ सही सलामत की रिपोर्ट डीएम तक पंहुचा देंगे और अगले माह की दुकानदारी और पाझरुपन के लिए लोग अपना झोला तैयार रखेंगे|
मई माह में भी ऐसा ही हुआ है-
विशेष रूप से मई 2014 माह के वितरण पर ये नजारा भी ठीक वैसा ही दिखा जैसा आमतौर पर होता रहा है| फि भी लिखने की गुंजाईश इसलिए बनी क्योंकि डीएम एनकेएस चौहान ने कहा था कि वे सार्वजानिक वितरण प्रणाली में व्यापत भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाएंगे| मगर सब कुछ वैसे ही इस विभाग में फिर से हुआ जो पिछले माह हुआ और उससे पहले भी हुआ| वैसे “अंकुश” बहुत ही ताकतवर हथियार होता है| हाथी को 3 फुट का “अंकुश” ही कंट्रोल करता है मगर उसके लिए महावत की दृढ़ इच्छा शक्ति की जरुरत होती है|
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