छत्तीसगढ़:बगीचा विकासखंड अंतर्गत नारायणपुर में एक अद्भुत बच्ची है, जिसे लोग जल कन्या के नाम से जानते हैं। 9 साल की तीसरी कक्षा पढ़ने वाली भूमिका (परिवर्तित नाम) जब एक साल की थी, तभी से पानी में ही उसे सुकून मिलता था। यह आदत धीरे-धीरे इतनी बढ़ी की अब वह 24 घंटे में आधे से ज्यादा समय पानी में बिताती है। मौसम कोई भी हो, बच्ची को प्रभाव नहीं पड़ता है और वह मौका मिलते ही पानी में कूद पड़ती है।
बादलखोल अभयारण्य के नारायणपुर इलाके में पली बढ़ी भूमिका (9) की अद्भुत कहानी है, जिसको लेकर उसके माता पिता काफी चिंतित हैं। जब भूमिका 1 साल की थी, तभी घर वालों को अहसास हुआ कि बच्ची को पानी में रहना अधिक पसंद है। तब वह घर में पानी भरी बाल्टी या किसी अन्य बर्तन में जाकर बैठ जाती और लंबा समय बिताती थी। विरोध करने पर रोने लगती थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया यह समस्या बढ़ती गई और उसने जलाशयों का रूख किया।
परिवार के सोते ही चली जाती है नदी-तालाब में
कम उम्र में ही उसने तैरना सीख लिया और पानी में रहना ही उसकी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया। जब जलाशयों में जाना संभव नहीं होता तो वह झाड़ियों के नीचे जाकर एक ही मुद्रा में घंटों बैठे रहती। वहीं अन्य समय में उसका व्यवहार सामान्य रहता है और वह स्कूल में साथियों के साथ खेलती है, पढ़ती है।
भूमिका के दादा ने बताया कि दिन-रात कभी भी परिवार के सदस्य सोते हैं, तो वह नजरें चुराकर तालाब या नदी में चली जाती है। इस व्यवहार के लिए उसे कई बार समझाने की काफी कोशिश की गई, पर हर प्रयास असफल रहा। अब परिजन को इस व्यवहार की आदत पड़ गई है। जब नई दुनिया की टीम भूमिक के बारे में जानने पहुंची, तब भी वह पास के तालाब में गई हुई थी।
मुझे सांप ने बुलाया है
जल कन्या के नाम से पहचानी जाने वाली भूमिका के परिजन बताते हैं कि जब वह छोटी थी, तो जलाशय यह कहकर जाती थी कि उसे सांप ने बुलाया है। यह शब्द वह घर में हमेशा बोलती रहती थी, लेकिन विगत डेढ़ साल से ऐसा कम ही बोल रही है, पर घरवालों को बिना बताए ही पानी में चली जाती है। भूमिका के इस व्यवहार को कुछ लोगों अंधविश्वास से जोड़ कर देखते हैं, वहीं चिकित्सा क्षेत्र के जानकार इससे मनोरोग से जोड़कर चिकित्सीय सलाह लेने कहते हैं।
अनहोनी को लेकर भयभीत हैें पिता
गरीब परिवार की भूमिका के पिता आजीविका के लिए खेती और मजदूरी का कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि जब भूमिका छोटी थी, तब उसके इस व्यवहार को उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन बेटी के 9 साल की होने पर भविष्य को लेकर चिंतित व भयभीत हैं कि कहीं उसके साथ कोई अनहोनी न हो जाए।
हालांकि बच्ची के दादा इससे बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखते और कहते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ बच्ची का व्यवहार सामान्य हो जाएगा। पिता ने बताया कि बेटी के इस व्यवहार को लेकर कुछ दिन पहले मुंबई से कुछ लोग आए थे, पर उन्होंने दोबारा संपर्क नहीं किया है।
आपके द्वारा जो लक्षण बताए जा रहे हैं उनके अनुसार बच्ची को हाईपर थाइरोडिज्म की संभावना लगती है, जिसका इलाज संभव है। चिकित्सीय जांच के बाद ही मामले में स्पष्ट रूप से कुछ कहा जा सकता है।
डॉ बीबी बोर्डे, सीएचएमओ, जशपुर
बच्ची के व्यवहार के बारे में जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक मामला मनोरोग से संबंधित लगता है। चिकित्सा जांच के बाद मनोरोग की पुष्टि होने पर उसके व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसे में चिकित्सकीय सलाह को प्राथमिकता देनी चाहिए, इसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं।
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