फर्रुखाबाद: सरकारी स्कूलों में बच्चो को बाटने वाली पुस्तको के मामले में जिलाधिकारी जहाँ सख्त रुख अपनाये हुए है वहीँ जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के बड़े बाबू से लेकर पुस्तक प्रभारी तक मामले को दबाने के लिए फाइलों की हेराफेरी में लग गए है| जिलाधिकारी एन के एस चौहान ने मीडिया को बताया कि उन्होंने सीडीओ से तीन दिन के अंदर चारो कमरो के अंदर बंद किताबो पर रिपोर्ट मांगी है| इसके लिए भले ही ताले तोड़ने पड़े| सोमवार को जाँच करने गए अधिकारियो को भण्डारण कक्षों में बंद पुस्तके जहां कर लौटना पड़ा था|
वहीँ बुधवार को कार्यालय के बड़े बाबू पालीवाल से जब मीडिया ने गत वर्षो में पुस्तको के आर्डर और अवशेष जानने की कोशिश की तो जबाब मिला की जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उन्हें किसी भी बात को मीडिया को बताने के लिए मना कर दिया है| प्रभारी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी भगवत पटेल से फोन पर बात करने पर उन्होंने भी इस बात को स्वीकार किया| सार्वजानिक विभागों को निजी मिलकियत की तरह चला रहे सरकारी कर्मचारी और अधिकारी भरहटाचार को छुपाने के लिए ऐसा जाल बनाते है जैसे कोई राष्ट्र सुरक्षा का मामला लीक होने वाला है| ऐसा लगता है कि पिछले 10 सालो से पुस्तक पटल देख रहे लिपिक पालीवाल की फाइलों में भारी घपला और घोटाला है जिसे छुपाने के लिए अधिकारी भी बराबर का साथ दे रहे है| आज तक मुफ्त बाटने वाली पुस्तको का पटल भी किसी को नहीं दिया गया| यही नहीं इस बाबू के नौकरी लगने से लेकर अब तक गृह जनपद में बने रहने से जालसाजों से गहरे संबंध बने हुए है| सूत्र बताते है कि वर्ष 2009 में चार ट्रक किताबे आई ही नहीं थी मगर भुगतान हो गया था| बेसिक शिक्षा अधिकारी की मिलीभगत के बिना इतने बड़े पैमाने पर घोटाला करना संभव नहीं है| जानकारों का मानना है कि निस्पक्ष जाँच के लिए संबंधित लिपिक पालीवाल का पटल से हटना और उसी विभाग के अधिकारी को जाँच से दूर रखना होगा तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा|
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