डेस्क: 75 दिन जेल में गुजार चुके सहारा प्रमुख सुब्रत राय इस बात से अत्यंत दुखी है कि उनकी एक भी चाल चल नहीं पा रही है. उनके मामले की सुनवाई कर रही बैंच बदल चुकी है जिसके कारण थोड़ी राहत की आस थी लेकिन नए जजों ने भी जमानत देना तो दूर सरेआम ये कह कर उनके जख्मों पर नमक रख दिया कि हम सब जानते है- आपका धंधा टोपी फिराने का है यानी इसकी टोपी उसके सर और उसकी टोपी इसके सर, बेचारे सहारा के दिग्गज वकीलों को और बार -बार शर्मिन्दा होना पड़ता है जो पहले कभी नहीं हुआ होगा।
19 मई 2014 को हुई सुनवाई में एक बार फिर जजों ने साफ़ है कि पैसा लाओ और बाहर जाओ, बताओ क्या बेचने लायक है तुम्हारे पास, लिस्ट दो हमें संपत्ति की, अब बेचने लायक कुछ होता तो अब तक बेच नहीं चुके होते, सब कुछ तो बंधक तो रखा है, बार- बार घुमा -फिरा कर एक ही प्रस्ताव पर आकर बात अटक जाती है, पैसा नहीं है, अरे पैसा हो तो लाएं, सब कुछ तो मौज -मस्ती, क्रिकेट, रेसिंग, पार्टियों में लुटा दिया, उधार ले -लेकर घी पीया तो कहाँ से आये पैसा, संकटमोचक थे तो उनसे भी बैर हो गया जैसे अमर सिंह, मुलायम को तो अपनी गद्दी बचाने की पड़ी है. नई सरकार सब के अच्छे दिन लाने का वादा कर रही है, पर सहारा को इस नारे से कोई उम्मीद नहीं है|
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