फर्रुखाबाद: हर माह सरकारी नौकरी के नाते जेल में चूना डाल कर औचक निरीक्षण होता है| डीएम और जिला जज अंदर जाते है, जेल में बंदियों से मिलते है, निरीक्षण करते है मगर बाहर निकल कर मीडिया के सवालो में जबाब मिलता है कि अंदर सब कुछ ठीक ठाक है| अगर सब कुछ ठीक ठाक है तो जेल के अंदर कई दर्जन मोबाइल किस नियम के तहत मौजूद है| कल रात बिजली चले जाने के बाद और बंदियों द्वारा बल्ब और सीऍफ़एल तोड़े देने के बाद घुप्प अँधेरे में बंदियों के खेमे में कई टार्च वाले मोबाइल अपनी रौशनी फेक रहे थे| आखिर ये मोबाइल जेल के अंदर बंदियों को किसने और कितने पैसे लेकर रखने दिए इसकी जाँच कौन करेगा| हाँ अंग्रेजो के जमाने का नियम जरूर अपनी सुविधानुसार सरकार के अधिकारियो ने चालू कर रखा है कि मीडिया अंदर नहीं जाएगी| जेल के अन्दर से बाहर एक एक खबर बंदी अपने मोबाइल से फ़ोन करके जेल के अंदर से भिजवा रहे है| और जेल प्रशासन हरिश्चंद्र की औलाद बना हुआ है|
क्या सब कुछ मीडिया और जनता से छिपाने के लिए बना हुआ है| घूसखोरी, रिश्वतखोरी और लूट खसोट इसकी बात बाहर न जाए इसलिए जेल के अंदर मीडिया का जाना मना है| आज जब गूगल पर पूरी जेल देखी जा सकती है तब मीडिया को दरवाजे से अंदर जाकर जेल देखने और उसकी फोटो खीचने की मनाही है| पारदर्शिता के ज़माने में कौन सी राष्ट्र सुरक्षा में सेंध जेल में लगने वाली है किसी के पास कोई जबाब नहीं| सरकार कई बार सीसीटीवी लगवाने की बात मीडिया से करती रही है मगर जेलों में शायद इसलिए नहीं लग पाये कि सुरक्षा के साथ साथ रिश्वत पर भी सेंध लगने के चांस बन जायेंगे| इसीलिए अधिकारी सरकार को अपने तरीके से समझा लेते है| और सरकार क्यों समझ लेती है ये बात चुनाव में पता चलती है| दो एक दूसरे के पूरक है जनता के नहीं| वैसे जेल के अंदर मोबाइल होना मीडिया के लिए लाभकारी ही है, मुसीबत ज्यादा होने पर बंदी या कैदी अपनी बात तो मीडिया तक पहुँचवा देते है| [bannergarden id=”8″] [bannergarden id=”11″]