विकास का माडल पेश करने में नेता हुए फेल, हंगामे के साथ “आजतक” का “राजतिलक” रहा अधूरा

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Editorफर्रुखाबाद: जो तस्वीर इस बार टेलीविज़न पर फर्रुखाबाद की देश की जनता ने देखी है वो काफी निराशाजनक है| विभिन्न टीवी मीडिया इलेक्शन का कवरेज विभिन्न इलाको से करती रही है| इसको भी सभी ने देखा है मगर जो कार्यक्रम फर्रुखाबाद से सीधे प्रसारित हुए काफी निराशाजनक कहे जा सकते है| हुड़दंग, हंगामा, हुल्लड़ और बेसिर पैर के मुद्दो से आलोचना और बेहूदे डाइलोग से भरपूर| एबीपी न्यूज़ का एक घंटे का कार्यक्रम 19 मिनट में बंद करना पड़ा, ज़ी न्यूज़ का 20 मिनट का और आज तक का “राजतिलक” एक ब्रेक तक न झेल पाया| जरा सोचो क्या खूब तस्वीर पेश हुई है फर्रुखाबाद की|

यहाँ आलोचना किसी पार्टी विशेष की करने की नहीं है| एक पार्टी से शुरू हुआ हुड़दंग दूसरी पार्टी ने भी सीख लिया| क्या यही तहजीब है? क्या यही सलीका है? प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों के पास जनता के सामने विकास का खाका पेश करने का कोई माडल नहीं| बस विकास करेंगे, कैसे करेंगे और क्या करेंगे या फिर विकास करने के लिए क्या क्या किया जा सकता है किसी के पास कोई मसौदा नहीं| बस एक दूसरे पर कीचड उछालने के अलावा कोई बात नहीं| ये जनता ने खुद देखा और सुना है|

एबीपी न्यूज़ और आज तक में महिला एंकर थी| दोनों कार्यक्रमों में पार्टियो के कार्यकर्ता जिस तरह से आगे आकर उसे घेरने लगे ये भी सभी ने देखा| क्या यही तस्वीर हम फर्रुखाबाद की बना रहे थे देश के सामने| जैसे नेता वैसे ही कार्यकर्ता तस्वीर पेश कर रहे थे| ऐसा लग रहा था जैसे पहले से ही हंगामे की तैयारी से आये थे और कार्यक्र्म फेल करने की ठान ली थी| सत्ता को सवालो को झेलना पड़ता है ये सच है मगर क्या सत्ता पक्ष (कांग्रेस और सपा) से सवाल पूछने पर कार्यर्ताओं को हंगामा करने के लिए तैयार किया गया था| सभी टीवी के कार्यक्रमों में अग्रिम पंक्तियों में पार्टियो के कार्यकर्ता थे, जनता नहीं थी| चेहरे सब बता रहे थे| आज तक के कार्यक्रम में एंकर अंजना ओम कश्यप ने जैसे ही नेताओ से पूछा- “विकास का फर्रुखाबाद के लिए क्या माडल है”? नेताओ को साप सूंघ गया| बिना किसी मुद्दे और योजना के चुनाव लड़ रहे नेता सिर्फ लड़ रहे है| प्रचार में भी लड़ रहे है और टीवी पर भी| संसद पहुचने की होड़ है| मगर वहां क्या करना है इस बात का ज्ञान बढ़ाने की कोई होड़ नहीं| किसे चुनने जा रहे है हम| जरा सोचिये….|

देश में अन्य भागो से भी टीवी के कार्य्रकम पेश हुए है| क्या ऐसे ही कार्यक्रम हुए है| यूपी के कुछ भागो में ऐसे ही कार्यक्रमों की घटनाये सामने आई थी| अफ़सोस होता है ये देखकर की हम अपने फर्रुखाबाद और उत्तर प्रदेश की क्या तस्वीर देश में बना रहे है| पांच साल पहले इसी महीने में जब मैंने ज़ी न्यूज़ छोड़ा था तब तक ऐसे हालात नहीं थे| तब सभी टीवी मीडिया के जनता दरबार सहजता से निपट जाते थे| समय कम पद जाता था और जनता के सवाल रह जाते थे| अब बहुत बदलाब आया है| तब से अब तक आधा दर्जन चुनाव हो लिए और कई दर्जन चैनल बाजार में आ गए| हुड़दंगी माहौल को तैयार करने के कौन जिम्मेदार है? जरा सोचिये…