नामांकन कक्ष के बाहर एक मित्र अधिकारी ने बड़े जोश खरोश ने बताया कि नई आई एसपी साहब उनकी बिरादरी की है| “चौधरी” है| मैं अवाक रह गया| चलो ज्ञान बढ़ा| पूछ दिया कैसे? तो पूरी रिश्तेदारी बता डाली| मगर मुझे ये बताने का मतलब क्या था बहुत देर बाद समझ में आया| हालाँकि उस वक़्त ऐसा कोई प्रसंग बातचीत में नहीं था कि किसी की जाति का जिक्र करने की जरुरत हो| मगर उन्होंने बताई| मुझे याद आया कि वे खुद अपने विभाग के सजातीय मंत्री की बदौलत जिले में टिके है| एक और सजातीय बड़ा अफसर आने से उनके चेहरे पर जो रौनक मैंने देखी मानो माँ के दरबार में उन्हें साक्षात् आशीर्वाद मिला हो| मेरा मानना है कि अफसर हो या कर्मचारी कुछ लोगो की नौकरी ही उनकी काबिलियत से ज्यादा उनकी जाति के सहारे चलती है ऐसा देखने को यूपी में खासतौर पर मिलता है| यूपी में कई मुख्य सचिव और डीजीपी तक इसी गणित से बने है|
जहाँ आपकी पहचान जाति से होती हो उसे यूपी कहते है| जहाँ थानो में नाम के साथ जाति बताना जरुरी हो उसे यूपी कहते है| जहाँ सरकारी योजनाये जाति के हिसाब से बनती है उसे यूपी कहते है| जहाँ पत्रकार पीडितो का परिचय जाति से लेता हो| जहाँ स्कूल जाति वार चलते हो| और जहाँ अफसरो की तैनाती में जाति की सूची बनती हो उसे यूपी कहते है| और जहाँ जातिवार नेता और जातिवार वोटर हो उसे यूपी कहते है| जहाँ एक जाति विशेष की सरकार बनने के बाद दूसरी जातियो के सरकारी कर्मचारी नाम के आगे जाति लिखना बंद कर देते है उसे यूपी कहते है| ये यूपी है यहाँ एक बार फिर से विकास, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नहीं जाति के नाम पर वोट पड़ने जा रहा है| नेताओ और मीडिया दोनों ने विकास और भ्रष्टाचार के मुद्दे की हवा निकाल दी है ये यूपी का स्टाइल है..
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भारत में सरकारे जाति का प्रमाण पत्र जारी करती है| और गैर जाति में शादी करने से होते आनर किलिंग के मामले में अदालत भर्त्सना करता है| दोनों विरोधाभाषी लगते है| नेता जाति को हवा देते है और समाज को अंग्रेजो के स्टाइल में बाटो और राज करो की निति के रास्ते पर चलते हुए बाट रहे है| पूरा का पूरा चुनाव/लोकतंत्र ही जाति के सहारे खड़ा है और आचार संहिता कहती है कि “वोट धर्म और जाति के नाम पर नहीं मांगे जा सकते”| सब विरोधाभासी काम हो रहे है| कुछ सुधारवादी व्यक्तित्वों ने इस मुद्दे को बदलने की कोशिश की| अरविन्द केजरीवाल और अन्ना हजारे भी चुनाव की लौ तेज होते होते फेल हो गए| अरविन्द केजरीवाल तो खुद भी टोपी पहन बैठे| विकास और भ्रष्टाचार का मुद्दा भाषणो तक रह गया|
‘एक फेसबुक पर चुटकला पढ़ा- “नेताजी कितनी बार कर कह गए कि अबकी विकास होगा-अबकी विकास होगा| मगर हर बार मुन्नी हुई”|”
विकास, भ्रष्टाचार और बदलाव होगा कहाँ से| जब मतदाता नेता की जाति देख रहा है| नेता जातिवार मतदाताओ के आंकड़े इक्क्ठे कर रहा हो| कर्मचारी और अफसर अपने बड़े अफसर की जाति से खुद को जोड़ रहा हो| बड़ा अफसर जाति वाले नेता को तलाश रहा हो| जाति चक्र में विकास की उम्मीद कहाँ मुन्नी से ही काम चलाइये| सजातीय भ्रष्टाचार करे तो उस पर पर्दा डालो| साथ न हो तो गैर जाति वाल के खिलाफ हंगामा, धरना, शिकायत, मुकदमा करो और जाँच बैठाओ| ये यूपी का स्टाइल है|
चुनाव शुरू होने के लगभग 6 महीने पहले लगा रहा था कि इस बार चुनाव का मुद्दा कुछ बदला बदला सा लगेगा| अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल दोनों की चर्चा पूरी सर्दी भर गाव की चौपाल में देर रात तक जलते अलाव में हो रही थी| खासकर कमजोर वर्गों में भी एक उम्मीद की लौ जली थी| सामंतवादी व्यवस्था से दुखी आ चुके समाज में जला आशा का दिया चुनाव के शबाब तक आते आते बुझ सा गया| केवल धुँआ बचा है| नए घी के अभाव में वो भी राख हो जाने वाला है ऐसा लगने लगा है| अरविन्द केजरीवाल ने टोपी पहन ली है| अन्ना हजारे को किरण बेदी, जनरल बीके सिंह, संतोष भारतीय और अंत में ममता बनर्जी ने मूर्ति में तब्दील कर दिया| सब कुछ ख़त्म बस एक बार फिर से जाति बची है|
आंकड़े समझाये जा रहे है| जो वोटर प्रत्याशी की जाति का नहीं है उसे समझाया जा रहा है कि ऊपर मोदी को देखो, सोनिया राहुल को देखो| मंच से भाषण हो रहे है मायावती ने सभी जातियो को बराबर का मौका दिया| इतने मंत्री फला जाति के बनबाये थे| मुलायम का गणित है कि यादव उनके साथ है मुसलमान बस आ भर जाए| भाजपा का गणित भी इससे अलग नहीं है| जो नेता ठीक से सुन नहीं सकता है, लोगो को पहचान नहीं पा रहा है ऐसे कल्याण सिंह की जाति का वोट बैंक गणित है इसलिए वे सक्रिय और भाजपा के स्टार प्रचारक है| न विज़न है और न ही कोई विकास का खाका| बस मुन्नी से काम चलाओ……
ये यूपी का स्टाइल है……मतदाता खामोश है……पूछ रहा है कौन जाति के हो…