डेस्क: कहा सबने, किया ममता ने…पिछले कई रोज से बार बार लगातार किसन बाबू राव हजारे उर्फ अन्ना हजारे टीवी पर आकर हमें यही बता रहे थे. मगर जब बात टीवी के बजाय आमने सामने की आई. तो अन्ना हजारे की तबीयत खराब हो गई. इससे सकते में आई ममता बनर्जी बस इतना ही बोलीं कि अभी मेरा कुछ बोलना ठीक नहीं है. अन्ना जी से मिलकर ही बोलूंगी.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने बुधवार को दिल्ली में रामलीला मैदान में रैली बुलाई थी. एजेंडा था अन्ना हजारे के बहाने ममता बनर्जी को राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करना. इस दौरान साइड किक के रूप में ऐसे लोग भी रहने वाले थे, जो कभी न कभी खबरों में रहे. मसलन, लक्ष्मी नगर के बिन्नी, जो केजरीवाल के खिलाफ बगावत करने के बाद खुद को अन्ना का सिपाही बताने में लगे थे. मगर मुख्य पटकथा दो किरदारों के इर्द गिर्द ही थी. ममता और अन्ना. रैली सुबह 10 बजे शुरू होनी थी. मगर दोपहर तक मैदान तो दूर कुर्सियां भी नहीं भर पाईं. ममता बनर्जी भी मजबूरी की मुस्कान लेकर 2 बजे के बाद मंच पर पहुंची. और अन्ना हजारे की सहायक सुनीता गोदारा मीडिया को बता रही हैं कि अन्ना हजारे की तबीयत बहुत खराब है. वह यह भी कह रही हैं कि अन्ना हजारे यहां किसी पार्टी के लिए कैंपेन करने नहीं, बल्कि जनता को एक मैसेज देने आए थे. मगर मैसेज तो अन्ना हजारे और दूसरे नेताओं को दिया है जनता ने.
यही रामलीला मैदान था, यही अन्ना हजारे थे और लोग उमड़ घुमड़ आ रहे थे. मगर उस आंदोलन के कथित नायकों ने बाद में जिस तरह के राजनीतिक पैंतरे दिखाए. सब को समझ आ गया कि आंदोलन एक प्लेटफॉर्म है. मकसद तो गाड़ी पकड़ मंजिल पर पहुंचना है. खुद अन्ना हजारे भी गैर राजनीतिक मंच का राग अलापते रहे और फिर एक दिन ममतामयी हो गए. अब उनके कथित नैतिक नेतृत्व पर, उनकी राजनीतिक समझ पर और उनके लगातार बदलते स्टैंड पर भी सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि अन्ना हजारे को एक कोटरी ने घेर रखा है, जो अपने सियासी फायदों के हिसाब से अन्ना का इस्तेमाल कर रही है.
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रैली को लेकर खिंचाई की
अन्ना हजारे की सहायक सुनीता ने टीएमसी नेतृत्व पर भी सवाल उठाकर जाहिर कर दिया कि इस अजीब राजनीतिक गठजोड़ में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. सुनीता ने कहा कि पार्टी को अपनी रैली दिन के बजाय शाम के वक्त करनी चाहिए थी. और इसके लिए रविवार का दिन चुनना चाहिए था. उन्होंने कहा कि रैली का ठीक से प्रचार भी नहीं किया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि पूरी दिल्ली के लोग अन्ना हजारे को देखना, सुनना और मिलना चाहते हैं. मगर पार्टी ने इसका ठीक से इंतजाम नहीं किया|
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या बीमारी सिर्फ एक बहाना है. क्यों इसकी आखिरी वक्त पर सूचना दी गई. और क्यों ये सब ममता बनर्जी के साथ ही बार बार हो रहा है. पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर एक दिन मुलायम सिंह यादव ममता बनर्जी के बगलगीर थे और कुछ दिनों बाद यूपीए के पाले में जाकर खड़े हो गए. उसके बाद से ममता कुछ सावधान नजर आईं. वह तीसरे मोर्चे के सुर ताल से भी दूर रहीं. जब उनकी धुर विरोधी लेफ्ट ने मोर्चा बनाया, तो ममता ने खिल्ली उड़ाई. और उसके बाद ममता ने जब अन्ना के सहारे पं. बंगाल के बाहर नजर दौड़ाई भी, तो पहले मंजर में ही कंकर आ गया|
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