फर्रुखाबाद: जिला जेल में बंदी ने सुरंग बना ली और फरार हो गया| सुरंग बनाने का औजार भी बिल्कुल शोले फ़िल्म वाला ही निकला| सरिया की जगह पाइप का टुकड़ा बताया गया| फ़िल्मी कहानी में असली कहानी फिट करने की कोशिश| पहले बंदी भागा, फिर सबने जाना और उसके बाद मुकदमा और शासन को रिपोर्ट भेजने का काम| अभी बहुत काम करना है जेल प्रशासन को| पहले से ही सैकड़ो मामले की पेंडेंसी के बीच पुलिस को भी नया काम मिल गया| फरार आरोपी को तलाश करने का काम करना पड़ेगा| मगर इन सब के बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या बंदी के भागने में कोई फसेगा? और जेल से बंदी भागा क्यों?
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जेल प्रशासन की ओर होने वाली ऍफ़आईआर में कोई नहीं फसेगा| बात तकनीक की है| बंदी के फरार होने का समय मालूम नहीं| 4-4 घंटे पर पहरा बदल जाता है| ऐसे में किस पहरे की ड्यूटी में बंदी फरार हुआ ये कही खुल नहीं पायेगा और कोई नहीं फसेगा| ऍफ़आईआर केवल औपचारिकता निभाने भर के लिए होगी| यही लोकतंत्र है| लचीला, सुरीला, मनमाफिक कानून बनाने और उसे ठेंगा दिखाने के अवसर तलाश लेने के मौके भी देता है| जेलर साहब बड़े कड़क है| जेल में कोई कमी नहीं है| चूना डाल कर किये जाने वाले अफसरो के मासिक औचक निरीक्षणों में भी कभी कोई कमी नहीं मिलती| बाहर आकर मीडिया से तो यही कहा जाता है|
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मगर जेलर साहब जिस बैरक में 57 बंदी बंद हो वहाँ से सुरंग बनने के बाद केवल एक भागा और बाकी सब गांधी वादी हो गए| उन बचे हुए 56 बंदियो को तो उनकी ईमानदारी पर छोड़ देना चाहिए| बेचारे 56 कितने ईमानदार थे, बिलकुल साधू थे, सिर्फ अपने से मतलब| उन्होंने ईंटे तोड़ने का शोर सुनने में कान बंद कर लिए होंगे| या जान बूझकर अनजान बन गए होंगे| जेल के अंदर स्वर्ग जैसे माहौल से कौन भाग जाना चाहेगा| ऐसी बढ़िया माहौल बनाने के लिए जेलर साहब को तो इनाम मिलना चाहिए| सत्ताधरियो की सिफारिश और हरे हरे नोटों देने वालो को सुविधाये प्रदान करने और जो पैसा न दे सके उसे मजदूरी और मसक्कत करवाना हर जेल की परम्परा है| इस जेल की भी है| इसी मसक्कत का परिणाम है बंदी का फरार हो जाना, अब जेलर और जेल प्रशासन कोई भी कहानी गढ़े जनता उस पर यकीन करने वाली नहीं है| [bannergarden id=”17″]