लखनऊ: उत्तर प्रदेश में सर्व शिक्षा अभियान पर वित्तीय वर्ष 2014-15 में 1000 करोड़ से अधिक खर्च किए जाने का खाका खींच लिया गया है। इस प्रस्ताव की खास बात यह होगी कि न तो नए स्कूल खोलने का प्रावधान होगा और न ही नए शिक्षकों की भर्ती का पैसा मांगा जाएगा। प्रस्ताव में सबसे अधिक जोर शिक्षण कार्य की गुणवत्ता के लिए प्रशिक्षण चलाने जाने पर दिया गया है। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की अध्यक्षता में 21 फरवरी को होने वाले सर्व शिक्षा अभियान परियोजना परिषद कार्यकारिणी की बैठक में इसे मंजूरी मिलने के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेजा जाएगा।
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मानव संसाधन विकास मंत्रालय बेसिक शिक्षा के लिए सर्व शिक्षा अभियान के तहत पैसा देता है। कुल बजट का 65 प्रतिशत केंद्र देता है और 35 प्रतिशत राज्य सरकार को मिलाना होता है। उत्तर प्रदेश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के मानक के आधार पर स्कूलों की मंजूरी केंद्र सरकार पहले ही दे चुकी है। इसलिए प्रस्ताव में इस बार नए स्कूलों के निर्माण को शामिल नहीं किया गया है। इसी तरह वर्ष 2011 से परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती न हो पाने की वजह से नए शिक्षकों की भर्ती का प्रस्ताव भी शामिल नहीं किया गया है।
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प्रस्ताव में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों को उच्चीकृत करने, यहां पढ़ने व रहने वाली छात्राओं को और अच्छी सुविधाएं देने, नक्सल प्रभावित जिलों में तैनात शिक्षकों को प्रोत्साहन भत्ता देने, समेकित शिक्षा के अंतर्गत मंदबुद्धि बच्चों को घरेलू शिक्षा और दृष्टिबाधित बच्चों को ब्रेल लिपि में पुस्तक देने का प्रावधान किया जा रहा है। उच्च प्राथमिक स्कूलों में गठित मीना मंच के सदस्यों को प्रशिक्षण देकर सक्रिय करने, स्कूलों में शिक्षा सुधार के लिए सतत एवं व्यापक मूल्यांकन योजना लागू करने, आउट ऑफ स्कूल बच्चों को चिह्नित करने के लिए विशेष सर्वेक्षण कराने संबंधी प्रावधान किया जाएगा।
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