सहारा ग्रुप अपनी काली कमाई को सफेद करने के लिए नई चाल चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट का डंडा पड़ते ही सहारा यह बताने में जुट गया है कि 22 हजार करोड़ कहां से आए। सहारा ने गोल्डन यू स्कीम के जरिए एडवांस पैसा लेने के लिए एक फॉर्म निकाला है। फॉर्म को गौर से पढ़ने पर साफ हो जाता है कि यह कवायद संभावित सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देखते हुए शुरू की गई है। फॉर्म के आवश्यक निर्देश में साफ लिखा है कि फॉर्म भरने वाले ‘कार्यकर्ता’ मई 2012 से पूर्व के जुड़े होने चाहिए। लेकिन आगे तो सहारा ने दुस्साहस दिखाते हुए कहा है कि फॉर्म में कोई तारीख न दी जाय।
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फार्म के दूसरे पेज पर देखें तो “विशेष’ निर्देश का बॉक्स बनाकर लिखा है कि जब कोई अधिकारी पूछे कि एडवांस में पैसा क्यों दिया है तो उसे बताना होगा कि वह संस्था से पहले से जुड़ा हुआ है। यह अधिकारी कौन होगा इसका फैसला तो सुप्रीम कोर्ट करेगा। लेकिन क्या कानूनी रूप से ऐसे दिशा निर्देशों के साथ फंड जुटाने की आजादी ठीक है। सहारा द्वारा जारी किए गए फॉर्म से साफ है कि सहारा की मंशा भीतर से काली है। वह नियमों की दुहाई देते हुए भी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाता है। उसके बाद न्याय व्यवस्था को भी ठेंगे पर रखता है।
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सहारा ने दो महीना पहले मीडिया से सवा सौ लोगों को नौकरी से हटाया है। अब वो 56 हजार नौकरी देगा। ऐसा ही झूठा बयान उसने Q शॉप की लॉन्चिंग के वक्त भी दिया था। सहारा-सेबी विवाद के कारण निवेशक सहारा की योजनाओं में पैसा निवेश करने से बच रहे हैं जिससे कंपनी की माली हालत पर बुरा असर पड़ रहा है। इसको देखते हुए सहारा के नीति नियंता मीडिया में विज्ञापन जारी कर ये साबित करने में जुट गए हैं कि सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है। लेकिन सच्चाई दुनिया जानती है। यह काले कारनामों से बचने के लिए गेम प्लान है।
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साभार- भड़ास वेबसाइट