मंत्री नरेंद्र सिंह के मंच पर आने से रामेश्वर यादव का कितना नफा, कितना नुकसान!

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फर्रुखाबाद: राजनीति के दो ही पहलू होते है- नफा या नुकसान| मगर चुनाव हमेशा तीन स्थितियों को लेकर लड़े जाते है| जीत, हार या राजनीति में अपने लिए मैदान तैयार करना| मंत्री नरेंद्र सिंह यादव विधायक रामेश्वर सिंह यादव के सामने भले ही जीत और हार की स्थिति का चुनाव हो मगर इन सबके बीच मंत्री पुत्र सचिन यादव के लिए तीसरी स्थिति भी है| और वो है, अपने लिए राजनैतिक मैदान तैयार करना| अखिलेश की सभा में कई विश्लेषण लगाये जा रहे है| मुख्यमंत्री सभा में मंत्री नरेंद्र सिंह यादव के मंच पर आने, तरजीह पाने और सभा में भीड़ हो जाने के अलग अलग मायने देखे जा रहे है| सचिन के सभा स्थल तक नहीं आने के अलग मायने देखे जा रहे है| वैसे सचिन यादव की टिकट काट कर रामेश्वर यादव को चुनाव लड़ाने का समाजवादी पार्टी के फैसला गलत था या सही इसका फैसला तो चुनाव परिणाम के बाद होगा मगर अब तो जो हलचल है उससे नए समीकरण उभरने लगे है|

रामेश्वर यादव को टिकट मिलने के बाद मंत्री नरेंद्र सिंह यादव के बीच अब तक विरोधी सुर वाले वाक्य बाण खूब चले है| सीना छलनी न सही मगर घाव खूब हुए| अब मंच पर नरेंद्र सिंह यादव को दिखाकर जो सन्देश समाजवादी पार्टी ने देने का प्रयास किया है उससे घाव भले ही नए न हो मगर जो हो चुके है उनके निशाँ शायद नहीं जा पाये| ऐसा राजनैतिक समीक्षकों का मानना है| जनता मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और प्रत्याशी रामेश्वर सिंह यादव की माला में नरेंद्र सिंह यादव का चेहरा अभी भी ढूंढ रही है|
RAMESHWAR YADAV AKHILESH YADAV
नवाबगंज में उमड़ी भीड़ की शाबाशी सपा जिलाध्यक्ष चंद्रपाल सिंह यादव के खाते में आई है| चंद्रपाल सिंह यादव ने खुद बताया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें भारी भीड़ जमा करने के लिए उनकी पीठ ठोकी और बधाई दी| राजनैतिक क्षेत्र मंत्री नरेंद्र सिंह यादव का था उनकी उपस्थिति भी मंच पर थी| भीड़ बढ़ाने के लिए मंत्री जी ने कई छोटी छोटी सभाए की थी| मंत्री नरेंद्र सिंह यादव के इलाके में मुख्यंत्री की सभा में उमड़ी भीड़ नरेंद्र सिंह यादव की ताकत का सन्देश दे गयी| मगर मंच पर आने भर से नरेंद्र सिंह यादव और उनके पुत्र सचिन यादव सपा प्रत्याशी रामेश्वर सिंह यादव को अपने वोट ट्रांसफर कराएँगे इस बात की कोई गारंटी नहीं ली जा सकती| ऐसा विश्लेषको का मानना है| कुछ विश्लेषक तो कहते है कि अब अंदर घुस कर वार होगा| विरोध में नहीं है इस बात का सबूत तो खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव देंगे क्योंकि नरेंद्र सिंह यादव के इलाके में हुई जनसभा में भीड़ तो खूब उमड़ी थी| राजनीति की चौसर पर बिछी विसात में कौन सा मोहरा किसके हाथ है ये किसी को नहीं मालूम| क्योंकि ये फर्रुखाबाद है, यहाँ का राजनैतिक माहौल आसपास के जिलो के राजनैतिक माहौल से बिल्कुल मेल नहीं खाता|[bannergarden id=”8″]

सचिन यादव का न आना-
ये महत्वपूर्ण बिंदु है| मुख्यमंत्री की सभा में पूर्व सपा प्रत्याशी सचिव यादव का सभा स्थल और मंच तक न पहुचना एक अलग सन्देश अभी भी दे रहा है| एक कहावत है “गाली की भीतर और चोट के बाहर” हालात कुछ ऐसे ही है| फर्रुखाबाद में अंतर्कलह से झूझ रही समाजवादी पार्टी की टिकट ही अपने आप में एक अबूझ पहेली बन कर रह गयी है| बार बार ये सन्देश जनता में आना कि सचिन यादव निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे अबूझ पहेली में ठुकी कील का काम कर रही है| राजनीति और उसके मंच के एक एक दृश्य का मायना होता है| जनता उसका विश्लेषण करने लगी है| विधान सभा या लोकसभा के चुनाव में जनता प्रधान और कोटेदार के कहे पर वोट नहीं करती है| अपना विवेक इस्तेमाल करती है| कम से कम पिछले दो दशक से फर्रुखाबाद के बारे में तो यही कहा जा सकता है| यहाँ जनता किसी को जिताने के लिए वोट कम डालती है, किसी को हारने के लिए किसको वोट देना है इस बात पर फैसले होते है| कोई जीते, फलां न जीते ये मुद्दा होता है| और इसी पर वोट पड़ते चले आ रहे है| जो प्रत्याशी जनता के “फलां न जीते” के फ्रेम में फस गया वो चुनाव तो फर्रुखाबाद से नहीं जीत पाया|
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सभाओ का रोल-

अब राजनैतिक सभाओ का रोल बहुत कुछ वोट बांधे रखने और माहौल बनाने में कामयाब नहीं रहा है| किस की सभा में भीड़ उमड़ी और किसी सभा खाली रही इस बात से भी जनता के मानसिक पटल पर कोई खास असर नहीं पड़ता| क्योंकि भीड़ जनसभा में कैसे आती है गाओं का छोटे से छोटा आदमी भी जानता है| टैक्टर में डीजल के पैसे दिए जाते है| भीड़ जुटाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओ को जिम्मेदारी दी जाती है| और नाना प्रकार के प्रयास किये जाते है| राजनैतिक शिखर पर पहुचने के बाद नेताओ का तिलस्म जानता के बीच टूट रहा है| लोग स्वतः सुनने नहीं आते, लाये जाते है| इसलिए सभा विशाल हो गयी इससे जीत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता| जानता के बीच नेता की छवि और दिलो में जगह कितनी बनी है चुनाव में वोट इस मसले पर मिलने लगे है| देश और देश की राजनीति बदल रही है इस बात का भान चुनाव लड़ने वाले नेताओ को रखना होगा| [bannergarden id=”17″]