संतान की रक्षा के लिए भगवान सूर्य की उपासना का पर्व छठ बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित देश के अन्य भागों में गुरुवार को खरना से शुरू हो गया। शुक्रवार शाम को व्रती महिलाएं डूबते सूर्य और शनिवार को उगते सूर्य को अघ्र्य देंगी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भगवान सूर्य की उपासना का पर्व छठ मनाया जाता है।
इस बार छठ पर्व में शाम को दिया जाने वाला अघ्र्य 12 नवंबर को और प्रात:काल का अघ्र्य 13 नवंबर को दिया जाएगा। बुधवार को लोगों ने नहाय खाय के तौर पर छठ पूजा शुरुआत की जबकि गुरुवार को लोगों ने खरना का अनुष्ठान किया।
इस पर्व के बारे में पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। मैथिल वर्षकृत्य विधि में भी ‘प्रतिशर षष्ठी’ की महिमा के बारे में बताया गया है। बताया जाता है कि सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण जल में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे। पूजा के बाद कर्ण किसी भी याचक को खाली हाथ अपने घर से नहीं लौटाते थे।
इस व्रत को सभी हिंदू अत्यंत भक्ति भाव व श्रद्धा से मनाते हैं। सूर्याघ्र्य के बाद व्रतियों से प्रसाद मांगकर खाने का प्रावधान है। प्रसाद में ऋतुफल के अतिरिक्त गेहूं के आंटे और गुड़ से शुद्ध घी में बने ठेकुआ व चावल के आंटे से गुड़ से बने भूसवा का होना अनिवार्य है। षष्ठी के दिन समीप की नदी या जलाशयों के तट पर अस्ताचलगामी और दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अघ्र्य समर्पित कर पर्व की समाप्ति होती है।
पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाली व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं। इसके बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं। व्रत समाप्त होने के बाद व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं।
मान्यता है कि पंचमी के सायंकाल (खरना पूजन) से ही घर में भगवती षष्ठी का आगमन हो जाता है। इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन व्रत में शक्ति व ब्रह्मा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है।