अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन सिस्टम की चांसलर और यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन की अध्यक्ष रेणु खटोड़ इस पद पर पहुंचने का श्रेय अपने सपनों और जज्बे को देती हैं और उनका कहना है कि अपने देश की मजबूत बुनियाद के चलते आज वह एक अमेरिकी विश्वविद्यालय की कमान संभाल रहीं हैं।
करीब चार दशक पहले भारत से अमेरिका चली गयीं रेणु उत्तर प्रदेश के फर्रखाबाद से ताल्लुक रखती हैं और उनकी प्रारंभिक शिक्षा हिंदी माध्यम के स्कूल में हुई। लेकिन उन्होंने अपने सपने के बल पर आज अमेरिका के एक बड़े अनुसंधान विश्वविद्याpलय के प्रमुख के पद तक की यात्रा तय की है। प्रवासी भारतीय दिवस-2014 के युवा केंद्रित सत्र को संबोधित करते हुए 58 वर्षीय रेणु ने कहा, ‘‘सपना देखना चाहिए क्योंकि सपने बदलाव लाते हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मौके मिलते हैं और खिड़कियां खुलती हैं लेकिन उनका फायदा उठाना जरूरी है।’’ उन्होंने नेतृत्व क्षमता पाने के लिए परीक्षाओं से गुजरने की अनिवार्यता की ओर इशारा करते हुए कहा कि अब्राहम लिंकन हों या महात्मा गांधी अथवा नेल्सन मंडेला, सभी विषम परिस्थितियों से गुजरे।
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रेणु ने बताया कि उन्होंने सबसे ऊंचे दर्जे तक शिक्षा पाने का एक सपना देखा था और उसे पूरा करने की दिशा में लगी रहीं। भारत में ही स्नातक की पढ़ाई होने के बाद उनकी शादी अमेरिका में डॉ सुरेश खटोड़ से कर दी गयी और रेणु को अपना सपना टूटता दिखाई दिया। हालांकि उन्होंने सम्मेलन में मौजूद अपने पति से मुखातिब होते हुए कहा कि उन्हें अपने जीवनसाथी का पूरा सहयोग मिला और अमेरिका में उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा। उन्होंने पुदरू यूनवर्सिटी से मास्टर डिग्री ली और बाद में पीएचडी की उपाधि भी हासिल की। रेणु के मुताबिक हिंदी माध्यम से पढ़ने वाली लड़की के लिए अमेरिका में अंग्रेजी भाषा के माहौल में पढ़ाई करना बहुत कठिन था लेकिन उन्होंने टीवी पर अंग्रेजी धारावाहिकों को देखकर और अंग्रेजी अखबार पढ़कर इस भाषा में भी महारथ हासिल कर लिया। इसके परिणामस्वरूप ही वह अपनी कक्षा में सर्वोच्च अंक पाने वाली छात्रा भी रहीं। उन्होंने कहा कि सपने देखकर उसे पूरा करने का उनका जज्बा ही था जिसके नतीजतन वह 130 से ज्यादा अभ्यर्थियों के बीच में से यूनिवर्सिटी ऑफ ह्यूस्टन सिस्टम की चांसलर चुनी गयीं और आज अमेरिका में शिक्षा व्यवस्था में अहम योगदान दे रहीं हैं।
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