ज्ञापन और प्रदर्शन का धंधा: रसोइयो को सपने दिखाकर 2 करोड़ इक्ट्ठे किये

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फर्रुखाबाद: समाजशास्त्र की किताब में किसी महान विचारक का व्यक्तव्य पढ़ा था “जब तक इस दुनिया में मूर्ख जिन्दा है बुद्धिमान भूखा नहीं मर सकता”| आज याद आ गया उन भोले भाले रसोइयो को कलेक्ट्रेट के प्रांगण में नारे लगाते और हाथ उठाकर फ़ोटो खिचवाते देखते हुए| 12 महीने के साल में केवल 11 महीने मिलने वाले एक हजार मासिक के मानदेय पर स्कूल के बच्चो के लिए खाना बनाने वाले रसोइयो को संगठित करना आसान बात नहीं है| इन रसोइयो में से बहुतो को कई कई महीने वो छोटा सा मानदेय तक नहीं मिलता| फिर भी सपने तो दिखाए जा सकते है| कमजोरी और कमजोर कड़ी पकड़ कर अपने लिए साधन जुटा लेना ही होशियारी का काम है| मेरा मंतव्य रसोइयो को मूर्ख कहना नहीं है मगर जो हो नहीं सकता उसके सपने देखकर पैसे खर्च कर देना उसी श्रेणी में आता है| राज और काजल कटारिया भी यही कर रहे है| उत्तर प्रदेश में परिषदीय विद्यालय में खाना बनाने वाले रसोइयो को सपने दिखा कर इस रसोइया दम्पति ने अब तक इन रसोइयो से 2 करोड़ से ज्यादा का पैसा जमा कर लिया है|
Raj Kataria
फर्रुखाबाद का कलेक्ट्रेट परिसर में जिला आपूर्ति कार्यालय का अगवाड़ा| दो तीन बैनर के साथ धरना प्रदर्शन करते लोग| उन्हें कैमरा में कैद करने के लिए आसपास खड़े मीडिया के छायाकार और खबरनवीस| ये तस्वीर सोमवार से लेकर शनिवार को हर सरकारी कार्यदिवस में देखने को मिलती है| 10-20 लोगो को घेरे एक दो नेता टाइप लोग आते है| कुछ परमानेंट नेता कचहरी परिसर में पहले से मौजूद होते है| छायाकारों द्वारा फ़ोटो खीचने की मुद्रा में आते ही ये तीन चार परमानेंट नेता टाइप लोग लगभग हर धरना प्रदर्शन में अपना चौखटा घुसेड़ कर फ़ोटो खिचवाते है| ज्ञापन देते समय कैमरे में कैसे आयेंगे इसके फ्रेम भी इन्हे मालूम होते है| इसी रोजमर्रा की गतिविधिओ में गुरूवार को एक नौजवान जोड़ा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लक्कड़ तोड़ भाषा में कुछ महिलाओ को सम्बोधित कर कर रहा था|
Kajal Kataria
नए साल में कुछ साथियो के साथ कलेक्ट्रेट परिसर में घूमने का मन हुआ तो धरना प्रदर्शन के स्थल पर कुछ नए चेहरे नेताओ के रूप में देख पत्रकारिता कर लेने का मन हो आया| “राष्ट्रीय मध्याह भोजन रसोइया एकता संघ” यही टाइटल था उस बैनर का जिसके आगे पीठ करके लगभग 50-60 वृद्ध और नौजवान महिलाओ का झुण्ड छायाकारों की तरफ मुह करके खड़ा था| कोई 25-30 साल का एक नौजवान जोड़ा इन सबका नेतृत्व कर रहा था| उत्सुकता हुई ये देख कर कि रसोइये भी संगठन बना लिए| ये बेचारे एक गाव में दो चार ही होते है| गरीबी इतनी होती होगी कि 1000 रुपये मासिक मानदेय पर काम करने को तैयार हो जाते है| अक्सर प्रधान कई कई महीनो तक इन्हे इनका छोटा सा मानदेय भी नहीं देता| और कुछ बेशर्म प्रधान तो इनसे भी कमीशन वसूल लेवे| बात कुछ हद तक सही भी है| मगर कुछ के पास मोबाइल भी दिखे| ये कैसे संगठन चलाएंगे| कौन इनका नेतृत्व करेगा| मगर ये भी साकार होते दिखा|
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सपने तो किसी को भी दिखाए जा सकते है| ज्योतिष बन कर कुछ भी कमाया जा सकता है| और अगले जन्म की बात करना आता है तो आप आशाराम बाबू भी बन सकते है| भले ही इस जन्म का कुछ पता न हो| इन रसोइयो को भी सपना दिखाया जा रहा है| एक ज्ञापन तैयार है| कई सूत्री ज्ञापन ज्ञापन शायद कंप्यूटर से टाइप करने वाले के कंप्यूटर में सेव होने लगे है| 8 सूत्रीय ज्ञापन राष्ट्रीय मध्याह भोजन रसोइया एकता संघ पता नागलोई, नई दिल्ली के लैटर हे पर प्रिंट कराया गया| लगभग 50 प्रतियां तैयार कर झोले में रख भाषण शुरू| हाँ एक बात और संस्था का पता भले ही दिल्ली का है मगर इसे चलाने वाले दम्पत्ति मुज्जफरनगर में रहते है| दोनों वहाँ परिषदीय विद्यालय में रसोइया है| दोनों दम्पत्ति आधा आधा ज्ञापन जुटाई गयी रसोइयो की भीड़ को सुनाते है| कार्यरत रसोइयो को नियुक्त करने की प्रक्रिया जो हर वर्ष अपनायी जाती है उसे निरस्त किया जाए| रसोइये बदले न जाए इन्हे नियमित कर किया जाए| संबधित रसोइयो के बच्चो को नियुक्ति वाले विद्यालय में पढ़ाने की वाध्यता समाप्त कर दी जाए (शायद कान्वेंट में पढ़ाने में रूचि हो)| एम् डी एम् योजना में ठेकेदारी (अक्षय पात्र) रोकी जाए| रसोइयो का बीमा कराया जाए| और सबसे बड़ी मांग इनका मानदेय 5000/- किया जाए| यानि शिक्षा मित्र से ज्यादा हो| क्या पूरे दिन ये काम नहीं करते| प्रधान के घर से चावल लकड़ी लाने से लेकर बर्तन धोने तक सब काम करना पड़ता है| कटारिया दम्पत्ति के भाषण के साथ तालियां नहीं बजती केवल नारे लगाये जाते है- “राष्ट्रीय मध्याह भोजन रसोइया एकता संघ जिंदाबाद”|

Kajalअब पूरा तमाशा देखने के बाद कुछ खबर निकालने की इच्छा हुई तो नेताजी की पत्नी काजल को आवाज देकर पास बुलाया| नेताजी उस वक़्त भाषण दे रहे थे| दो अन्य पत्रकार साथी भी कौतूहल से सोचने लगे कि क्या निकलेगा| मैंने काजल से पूछा कि कहाँ से हो/जबाब मिला मुज्जफरनगर से| कितने जिलो में संगठन फैला लिया- मेरठ, बागपत से लेकर अलीगढ और अब फर्रुखाबाद सहित एक दर्जन जिले गिना दिए| मैंने पूछा कितने मेंबर यूनियन के बन गए| जबाब मिला कि एक लाख से ऊपर हो गए| काजल ने बताया कि उसकी सास रसोइया थी| उसने सोचा कि कुछ किया जाए तो सासु माँ की जगह खुद नियुक्त हो गयी| और पति पत्नी दोनों ने संघर्ष शुरू कर दिया| दोनों का संघर्ष मुझे दिखा रहा था| 12 लाख की SUV गाड़ी से दोनों चलते है| राज का सूट भी 4-5 हजार से कम का न होगा| दोनों के पास एंड्राइड मोबाइल फोन| मैंने पूछा लगता है कि जो मांगे रखी है पूरी हो पायेगी| बोली- क्यों नहीं होंगी, 26 को लखनऊ में धरना है| सरकार हिला देंगे| सरकार हिले न हिले मैं और मेरे साथी हिल गए| इतनी देर में मेरा जूनियर मेरे आदेश पर किसी रसोइये के पास से सदस्यता का फार्म निकाल लाया| उस पर लिखा था सदस्यता शुल्क 200 रुपये प्रतिवर्ष|
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फर्रुखाबाद में पहली बार सदस्यता अभियान की प्रतियां बाटी गयी है| कोई जय जय राम इसके जिलाध्यक्ष बनाये गए है| सदस्यता शुल्क में से कुछ हिस्सा जिलाध्यक्ष के पास भी रहता है इसीलिए वो भी मेंबर बनाता है| एक बार बना लिए तो हर वर्ष रेनोवल भी होगा| मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कौशल विकास प्रशिक्षण योजनाओ का पिटारा प्राथमिकता से चला रहे है| इस स्कीम को भी शामिल कर लेते कि कैसे यूनियन बनाकर रोजगार चलाये तो शायद इसमें अच्छा खासा पंजीकरण हो जाता| बेचारे डीएम साहब एक सप्ताक में दर्जन भर बैठके योजना में अधिक से अधिक पंजीकरण कराने के लिए कर चुके है| नाम होता- “संगठन बनाओ पैसा कमाओ’ प्रशिक्षण|

मैंने मोबाइल की घडी में समय देखा| केजरीवाल के बहुमत की बहस का समय हो चला था| लाइव छूट न जाए इसलिए वापस दफ्तर की ओर चल निकला| खबर बन चुकी थी| आधी जेब में थी और आधी दिमाग में| संस्था के दफ्तर का पता दिल्ली इसलिए ताकि उत्तर प्रदेश के साथ अन्य प्रदेश में भी जाल फैलाया जा सके| उत्तर प्रदेश मुज्जफर नगर के दो पति पत्नी गाव पलड़ी के प्राथमिक और जूनियर स्कूल में तैनात एक हजार रुपये मासिक मानदेय के रसोइये है| अब तक 3 करोड़ से ज्यादा का सदस्यता शुल्क जमा हो गया होगा| इन रसोइयो को कभी 5000 हजार का मानदेय मिले न मिले ये दोनों कटारिया कभी भूखे नहीं मरेंगे|
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