फर्रुखाबाद के 300 वर्ष: इत्र की खुशबू के साथ कन्नौज चला गया 30 करोड़ वार्षिक का कारोबार

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FARRUKHABAD : फर्रुखाबाद की पवित्र और सुगंधित माटी अपने गर्भ में राष्ट्रीय आंदोलन की क्रांतिकारी गाथा के साथ-साथ संकिसा प्रवास के रूप में गौतमबुद्ध के संदेश, महाभारत कालीन राजा दु्रपद की स्मृतियां, नेता जी सुभाषचन्द्र बोस व सरदार बिट्ठल भाई पटेल का अंग्रेजी शासन के खिलाफ फूंका गया बिगुल, नबाब मोहम्मद खां बंगश की शानदार विरासत के साथ-साथ असंख्य पवित्र पुरातन मंदिर, कुश ध्वज हर्ष, जयचन्द्र, दयानंद सरस्वती, डा0 जाकिर हुसैन, पदम श्री गुलाब बाई, महादेवी वर्मा, सदृश्य महापुरुषों के स्मृति केन्द्र राजा पोहकर सिंह और मणीन्द्रनाथ बनर्जी की शहादत के साथ-साथ डा0 राममनोहर लोहिया की कर्मभूमि का इतिहास जनपद में समाहित है। व्यवसायों में आलू, कपड़ा, छपाई, तम्बाकू, शेरा, अफीम, जल यातायात के साथ-साथ इत्र का इतिहास भी गौरवशाली है।Attar_Factory copy

कभी फर्रुखाबाद जनपद महज इत्र के व्यवसाय में ही तीस करोड़ वार्षिक की आमदनी किया करता था। लेकिन अब यह इतिहास बनकर रह गया। कन्नौज को 1997 में जनपद से अलग कर दिया गया और खुद उसे जिला बनाया गया। इसमें क्या विकसित हुआ, क्या इतिहास बना यह तो बाद की बात है लेकिन कन्नौज का फर्रुखाबाद से अलग होना जनपद की अर्थव्यवस्था व रोजगार को बहुत बड़ा झटका अवश्य दे गया।

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फर्रुखाबाद कन्नौज अपने में पूरा इतिहास संजोये हुए है। महर्षि विश्वामित्र को विसरत के रूप में जानने का सौभाग्य सहेजे इत्र नगरी कन्नौज को चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के काल में भारत की राजधानी बनने का गौरव भी प्राप्त है। यह सब गौरव कभी फर्रुखाबाद में हुआ करता था। यह ऐतिहासिक नगरी का अतीत भी गौरवपूर्ण नहीं रहा वरन वर्तमान भी सुगंधित था। कन्नौज के व्यावसायिक स्तर पर प्रारंभ हुए तकरीबन 100 वर्ष का समय बीत चुका है और यह उद्योग बड़े पैमाने पर होने लगा था। जिसका प्रमाण है वर्तमान में 400 छोटी बड़ी इत्र बनाने वाली इकाइयां इस सुगंधित नगरी की करीब 90 प्रतिशत आवादी इस उद्योग से जुड़ी हुई थी।Lakh Bhosai

लेकिन जनपद से कन्नौज का अलग हो जाना बहुत अधिक नुकसान दे गया। यहां का इत्र उद्योग किसी समय प्राचीनतम उद्योगों में से एक था जो फर्रुखाबाद के सर का ताज माना जाता था। जिसकी मुख्य बजह थी कि लगभग 30 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार उस समय मात्र इत्र उद्योग से जनपद कर रहा था। कन्नौज में इत्र उद्योग का आधार चंदन की लकड़ी था। उस समय लगभग 1500 टन चंदन की लकड़ी इस व्यवसाय में खपत होती थी। लेकिन जनपद से कन्नौज अलग हुआ उसके बाद कारोबार मे गिरावट भी आयी। लकड़ी की कमी कहें या व्यापार में कमजोरी, ढाई सौ टन चंदन की लकड़ी ही उपलब्ध हो पा रही है। कन्नौज के इत्र उद्योग को आक्सीजन की जरूरत है।

जनपद से अलग हुई सुगंधित नगरी से जनपद वासियों ने सुगंधित वातावरण तो खोया ही साथ ही साथ एक अच्छे रोजगार से भी हाथ धो बैठे। सुगंध और तीस करोड़ की वार्षिक आमदनी तो जनपद ने खोयी ही साथ ही साथ प्राकृतिक सुन्दरता व दर्जनों की संख्या में स्थित तीर्थ स्थलों को खोया। जिनमें लाख बहोसी पक्षी अभ्यारण्य केन्द्र भी प्रमुख है। जहां पर हजारों की संख्या में पक्षी तालाब में तैरते आज भी नजर आ जायेंगे।