लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने 30 नवंबर को अधिसूचना जारी कर 5 दिसंबर से विधानमंडल सत्र आहूत किया है। नियमानुसार 14 दिन के नोटिस पर सदन आहूत होना चाहिए। किसी बेहद आपात परिस्थिति में अल्पसूचना पर भी सत्र बुलाए जा सकते हैं।
पर, प्रदेश में ऐसी कोई बेहद आपात स्थिति तो दिखाई नहीं देती, जिसकी वजह से मात्र चार दिन के नोटिस पर सत्र बुलाने की आवश्यकता पड़ी हो। सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े हो रहे हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष केशरी नाथ त्रिपाठी व पूर्व संसदीय कार्यमंत्री हृदयनारायण दीक्षित कहते हैं कि बेहद आपात परिस्थिति में सरकार को तीन दिन के नोटिस पर भी सत्र आहूत का अधिकार है। पर, इस तरह की कोई स्थिति नहीं है।
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दीक्षित कहते हैं कि सरकार विपक्ष को जनहित के मुद्दे उठाने का मौका नहीं देना चाहती। सत्र आहूत होने के घोषणा के बाद ही अल्पसूचित प्रश्न स्वीकार किए जाते हैं। सत्र 5 दिसंबर से है। अल्पसूचित प्रश्न देने के लिए सदस्यों को सिर्फ सोमवार, मंगलवार और बुधवार तीन दिन ही मिल रहे हैं। इसके बाद प्रश्न विधानसभा/विधान परिषद सचिवालय के परीक्षण में भी जाएंगे। वहां से सरकार को भेजे जाएंगे। इतने कम समय में यह प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो सकती। सरकार इन तीन दिनों में प्राप्त अल्पसूचित प्रश्नों का उत्तर देने से मना कर देगी। इतने कम समय की नोटिस पर सत्र बुलाने का मकसद समझ से परे है।
जन सरोकारों से भाग रही है सरकार: बसपा
बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर कहते हैं। कोई आपात परिस्थिति नहीं थी। जनता से जुड़े कई मुद्दे हैं। जिन पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है। पर, सपा सरकार का कभी जनता की समस्याओं व जन सरोकारों से वास्ता नहीं रहा। सरकार ने साजिशन इतने कम समय की नोटिस पर सत्र आहूत किया है, जिससे उसका काम हो जाए। सरकार का यह आचरण बेहद अलोकतांत्रिक है। पर, इस तरह के कामों से वह जनता को धोखा नहीं दे सकती।
सदन की गरिमा गिराने पर तुली सरकार: भाजपा
भाजपा विधानमंडल दल के नेता हुकुम सिंह ने कहा कि सरकार सदनों की गरिमा गिराने पर तुली हुई है। इस तरह के काम किसी दिन जनता का सदनों पर से भरोसा ही खत्म कर दें। ऐसा लगता है कि सरकार घबड़ाई हुई है। वह विपक्ष को सरकार पर हमला करने की तैयारी का मौका नहीं देना चाहती। पर, इस तरह की सोच से संवैधानिक संस्थाओं के सम्मान को ठेस लगती है।
सपा उड़ा रही लोकतांत्रिक व्यवस्था की धज्जियां: कांग्रेस
कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर ने कहा समाजवादी पार्टी का कभी लोकतंत्र में भरोसा नहीं रहा। इसलिए इस पार्टी की सरकार से संसदीय व्यवस्थाओं व परंपराओं पर अमल की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। सपा सरकार ने जानबूझकर और सिर्फ अपना सरकारी कामकाज निपटाने के लिए मात्र चार दिन के नोटिस पर सत्र बुलवाया, ताकि वह अपने मन की कर लें।
सरकार शायद किसी गंभीर संकट में: रालोद
रालोद विधानमंडल दल के नेता दलबीर सिंह का कहना है कि प्रदेश में मुद्दे बहुत हैं। चार दिन के भीतर न तो तैयारी हो पाएगी और न सवाल ही डाले जा सकेंगे। किसी गंभीर मुद्दे पर चर्चा भी नहीं हो पाएगी। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि शायद सरकार किसी गंभीर संकट में है। वह सदन में उस संकट को सार्वजनिक करके विपक्ष से सहयोग लेना चाहती है। इसके अलावा दूसरा कोई कारण नजर नहीं आता।