धनतेरस|| दीपोत्सव के पांच दिनी पर्व का पहला दिन है। यह पर्व मूलत: धन-सम्पत्ति और सेहत की सुरक्षा के लिए मनाया जाता है। आयु और स्वास्थ्य के देवता भगवान धनवंतरि इसी दिन समुद्र से अमृत का कलश लेकर निकले थे और देवताओं को अमरत्व मिला था। इस दिन धन की पूजा के साथ ही मुख्य रूप से भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है। जो हमें लंबी आयु प्रदान करते हैं। पुराणों में धनवंतरि को भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना गया है।
कब करें खरीदारी
धनतेरस पर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। यह किसी भी मांगलिक कार्य के लिए श्रेष्ठ योग होता है। 3 नवंबर को शाम 4 बजे से रात तक यह योग होगा। जेवर, वाहन, बर्तन आदि खरीदने के लिए यह श्रेष्ठ समय होगा।
शुभ- (सुबह 10:50 से दोपहर 12:20 तक ) मूर्तियां, पूजन सामग्री, सौंदर्य सामग्री, नवीन वस्त्र, बर्तन आदि
चल- (दोपहर 02:20 से 03:50 तक)वाहन, मशीनरी, गैस, टीवी, म्यूजिक सिस्टम, मोबाइल, घडिय़ां।
लाभ- (दोपहर 03:50 से 05:20 तक) सोना, चांदी, मूल्यवान धातुएं एवं रत्न, धान्य, तिजोरी, बहीखाते, स्थायी सम्पत्ति, वॉलेट एवं पर्स।
अमृत- (रात 08:45 से 10:15 तक) खाद्यान्न, मिठाइयां,औषधियां, माइक्रोवेव, फ्रिज।
खरीददारी एवं पूजा के लिए सर्वश्रेष्ट मुहूर्त- शाम 04:30 से 7:30 बजे तक शाम 06:23 से 08 :21 बजे तक (वृष लग्र)
कैसे करें धनवंतरि की पूजा
पूजन सामग्री- गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, नैवेद्य के लिए चांदी का पात्र, प्रसाद के लिए खीरए पान, लौंग, सुपारी, वस्त्र (मौली) शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां।
पूजन विधि
धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा इस तरह करें। सबसे पहले नहाकर साफ कपड़े पहनें। भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा पूर्व की ओर मुखकर बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धनवंतरि का आह्वान निम्न मंत्र से करें-
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।
इसके बाद पूजन स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़े। भगवान धनवंतरि के चित्र पर गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली, आदि चढ़ाएं। चांदी के पात्र में खीर का नैवेद्य लगाएं। (अगर चांदी का पात्र उपलब्ध न हो तो अन्य पात्र में भी नैवेद्य लगा सकते हैं।) पुन: आचमन के लिए जल छोड़े। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। भगवान धन्वन्तरि को वस्त्र (मौली) अर्पण करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वन्तरि को अर्पित करें।
रोगनाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।
इसके बाद भगवान धनवंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन के अंत में कर्पूर आरती करें।
क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन
धनतेरस पर बर्तन खरीदने का महत्व है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय धनवंतरि हाथ में अमृत का कलश लेकर निकले थे। इस कलश के लिए देवताओं और दानवों में भारी युद्ध भी हुआ था। इस कलश में अमृत था और इसी से देवताओं को अमरत्व प्राप्त हुआ। तभी से धनतेरस पर प्रतीक स्वरूप बर्तन खरीदने की परंपरा है। इस बर्तन की भी पूजा की जाती है और खुद व परिवार की बेहतर सेहत के लिए प्रार्थना की जाती है।