FARRUKHABAD : दीपक शुक्ला– वर्तमान में कमालगंज से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित शेखपुर गांव का भी अपना एक पुराना इतिहास है। जनश्रुति के अनुसार पहले इसे रामग्राम कहा जाता था। बाद में मुगलकालीन शासन आने के बाद यह शेखपुर में तब्दील हो गया।
13वीं शताब्दी में रामग्राम शेखपुर के नाम से जाना गया। क्योंकि उस समय यहां कोलियों की राजधानी थी। फिर इसे रामगढ़ कहा जाने लगा। अकबर के शासनकाल में यहां अस्तानेगढ़ हो गया। जो आज भी गढ़ के नाम से मशहूर है। बौद्ध परिपथ में होने के कारण कुछ लोग भोजपुर में बौद्धगमन भी मानते हैं। जिसका क्षेत्रफल मीलों में फैला हुआ है। गढ़ जो वर्तमान में शेखपुर के पश्चिम में है बाद में यह ग्राम मजार में लगा दिया गया। फिर यहां मजार लगायी गयी। गढ़ के चारो ओर घेरा था। जिसे परकोट कहा जाता था। जिसके अंदर विशाल महल थे। जिसकी निहासों और दीवारों में पुरानी ईंटें अभी भी खोदने पर मिलती हैं। इन्हीं पुरानी ईंटों से ग्राम शेखपुर, बिचपुरी, गदनपुर, जीरागौर एवं देवराजपुर आदि ग्राम आज भी बने हुए हुए सैकड़ों ग्राम प्राचीन धरोहर को सुरक्षित किये हुए हैं।
प्राचीन रामग्राम (शेखपुर) का जो परकोट बना था वह काले कंकरीट, विशाल पत्थरों से मीलों में बना था। उस दीवार के चिन्हं भी विद्धमान हैं। जिसको आज भी महल कहते हैं। अक्सर इस जगह पर खुदाई में रामदरबार के सिक्के मिलते हैं।
घेरा 12 फिट चौड़ा था, रामग्राम (शेखपुर) से संकिसा तक सड़क बनी थी। इस परकोटा के बीच एक विशाल किला था जिसमें एक बहुत ऊंची मीनारनुमा लाट बनी थी। उस लाट पर दीपक रखा जाता था। इसमें काफी तेल आता था और जिसका प्रकाश क्षेत्र में काफी दूर तक जाता था।
उस समय का राजा देवराज कहा जाता था। इसीलिए उसके नाम से देवराजपुर ग्राम ऊंचे टीले पर आज भी स्थित है। इसके पश्चिम में ग्राम गदनपुर, पूर्व में गोदानपुर कहा जाता था। वह इसलिए कि राजा भोज यहां गायों का दान करता था। इसलिए इसे गोदानपुर कहा जाता था।
फतेहगढ़ किले में एक पत्थर रखा है, यह पत्थर नगला दाउद वाली बबली में लगा था। यहां से एक फरमान तथा पत्थर अंग्रेज 1936 में ले गये।
कल पढ़िये जीरा गौर, रानी का टीला, गंगुआ टीला, गौरा का ताल, भोजपुर, नगला दाउद आदि के बारे में –