अब गैस सिलेंडरों में नहीं लगेगी आग

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gasइलाहाबाद: उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के वैज्ञानिकों की योजना सफल रही तो हादसे से पहले ही गैस सिलेंडर में लीकेज का पता चल जाएगा। संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सेंसर बनाया है जिसमें हल्के लीकेज पर भी घंटी बजने लगेगी।

खास यह कि खर्च भी प्रति सिलेंडर मात्र पांच से 10 रुपये आएगा। इतना ही नहीं इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा। लैब में इस पर प्रयोग सफल हो चुका है। जल्द ही इसके व्यावसायिक उपयोग की उम्मीद है।

संस्थान के सेंटर फॉर इंटरडिस्प्लेनरी रिसर्च में हुए इस शोध से गैस सिलेंडर से आग लगने की घटनाओं पर काफी हद तक अंकुश की संभावना जताई जा रही है। सेमी कंडक्टर में लगे इस सेंसर को सिलेंडर में गैस भरते समय ही लगाया जाएगा।

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संस्थान के निदेशक प्रोफेसर पी. चक्रवर्ती ने सोमवार को प्रेसवार्ता में बताया कि इसे बनाने में जिंक ऑक्साइड का उपयोग हुआ है। इससे पर्यावरण को कोई खतरा नहीं पहुंचता। साथ में इसका दोबारा इस्तेमाल भी किया जा सकेगा। फिलहाल इस पर पांच से 10 रुपये खर्च होगा। उन्होंने बताया कि कीमत में और कमी के लिए प्रयोग जारी है।

निदेशक ने बताया ब्लू लाइट की पहचान करने वाला सेंसर भी बना लिया गया है। इसका सबसे अधिक उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में होगा। जन्मजात बच्चे को पीलिया तथा अन्य बीमारी की स्थिति में जिस शीशे में रखकर फोटोथेरेपी की जाती है उसकी क्षमता की जांच की सुविधा अभी व्यवहार में नहीं है।

इस सेंसर की मदद से रेडिएशन की क्षमता की जांच संभव होगी। यह रिसर्च जरनल में प्रकाशित हो चुका है। इसे पेटेंट कराने की तैयारी है।

राष्ट्रपति के सीधे संपर्क में होंगे एनआईटीज
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (एनआईटीज) के रिसर्च प्रोजेक्ट या अन्य फाइलें बहुत दिनों तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय या अन्य एजेंसियों में नहीं रुकेंगी। संस्थान के प्रतिनिधि सीधे राष्ट्रपति भवन के संपर्क में होंगे। इसके लिए दोनों जगहों पर सेल का गठन होगा।

राष्ट्रपति के साथ सभी एनआईटीज के निदेशकों की बैठक से लौटे एमएनएनआईटी के निदेशक चक्रवर्ती ने बताया कि प्रणब मुखर्जी विश्व के शीर्ष 200 की सूची में यहां के संस्थानों के शामिल नहीं होने पर चिंतित थे। इसके मद्देनजर उन्होंने कई सुझाव भी दिए। पहल की गई है कि एनआईटीज अपनी बात राष्ट्रपति के पास सीधे रख सकें। इसके लिए राष्ट्रपति भवन में एनआईटीज के लिए एक अलग प्रकोष्ठ खोलने पर सहमति बनी।