निर्जला उपवास रख की छठ पूजा व सूर्य देवता को दिया अर्घ्य

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FARRUKHABAD : चार दिनों का महापर्व छठ पूजा का आज दूसरा दिन यानि खरना है.शाम को व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद निर्जला उपवास पर चले जाएंगे. शुक्रवार शाम डूबते सूरज और शनिवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद ग्रहण कर श्रद्धालु व्रत समाप्त करेंगे.सूर्यदेव की उपासना के इस महापर्व को मनाने के लिए इस बार छठ घाटों पर भारी मात्रा में श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना जतायी जा रही हैं. शुक्रवार को सुहागिनों ने निर्जला उपवास रखकर छठ पूजा की व सूर्य देवता को दिया अर्घ्य दिया.chath pooja

छठ सूर्य देवता के प्रति असीम श्रद्धा और आस्था व्यक्त करने का पर्व है। कृषक समाज या कृषि पर आधारित समाज की संस्कृति में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा उस समाज की संपूर्ण मानसिकता का प्रतिनिधित्व करती है इसीलिए राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक जगत में अनेक तरह के परिवर्तन के वावजूद पर्व त्यौहारों का सिलसिला आज भी जारी है। सूर्य काल्पनिक देवता नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष देवता हैं और कृषक समाज को जब न तो विज्ञान का इतना विकास हुआ था और न ही आधुनिक सुख-सुविधाएं उपलब्ध थी, सूर्य सिर्फ ऊष्मा और ऊर्जा ही नहीं देता था बल्कि कृषि में भी हर तरह से सहायता पहुंचाता था। भारतीय समाज के एक वर्ग ने ऐसे प्रत्यक्ष देवता की पूजा का विधान करने में काफी सोच-समझकर नियम बनाए। सही अर्थों में पूजक कृषकों ने अपने पुरुषार्थ का प्रदर्शन किया। अपनी श्रमशक्ति से खेतों में वे जो कुछ उपजाते थे उन सबको पहले सूर्य देवता को भेंट के रूप में देते थे इसी अर्थ में यह पर्व कृषक समाज के पुरुषार्थ के प्रदर्शन के रूप में मनाया जाता है।

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इस पर्व के मौके पर जो लोक गीत गाये जाते हैं उनमें से कई गीतों के अर्थ कुछ इस प्रकार होते हैं—‘हे देवता! नेत्रहीनों को दृष्टि दो, कुष्ठ रोगियों को रोगमुक्त कर स्वस्थ बनाओ और उसी तरह से निर्धनों को धन प्रदान करो। यही तुम्हारे रथ को पूरब से पश्चिम की ओर ले जाएंगे।’ गौर करें तो इस गीत में अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के पीड़ित और उपेक्षित लोगों के लिए नया जीवन मांगा जा रहा है। एक लोकगीत में तो मांग की गई है, ‘हे देवता! हमें पांच विद्वान पुत्र और दस हल की खेती चाहिए।‘ इससे प्रमाणित होता है कि यह व्रत अत्यंत प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। भविष्य पुराण में भी इस व्रत का उल्लेख मिलता है- ‘कृत्यशिरोमणो, कार्तिक शुक्ल षष्ठी षष्ठीकाव्रतम’ यानी धौम्य ऋषि ने द्रोपदी को बतलाया कि सुकन्या ने इस व्रत को किया था। द्रोपदी ने भी इस व्रत को किया जिसके फलस्वरूप वह 88 सहस्र ऋषियों का स्वागत कर पति धर्मराज युधिष्ठर की मर्यादा रखती हुई शत्रुओं को समूल नष्ट करके विजय प्राप्त की।