नजर डालिए यूपी के लालुओं पर………..

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Baboo Singh nandiबिहार के चर्चित चारा घोटाले में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव व जगन्नाथ मिश्र को दोषी करार दिए जाने के बाद यूपी के सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि क्या प्रदेश के घोटालेबाज नेताओं के दिन भी अब लदने वाले हैं।

प्रदेश में चारा से भी कई गुना बड़े अनाज, एनआरएचएम, मनरेगा जैसे घोटालों में कठघरे में खड़े सियासी लोग कानून के साथ लुकाछिपी का खेल खेल रहे हैं। इन घोटालेबाज नेताओं-अफसरों के गठजोड़ पर अभी तक ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है।

यूपी की सियासत और भ्रष्टाचार के गठबंधन पर नजर डालें तो लालू व जगन्नाथ जैसे कई किरदार यूपी की सियासत में भी नजर आ जाएंगे। पर, हाल कुछ ऐसा है कि इनमें कई जद में आए ही नहीं, कुछ आए भी तो किनारे से निकल गए।

अनाज घोटाला हो या एनआरएचएम का गोलमाल। मनरेगा में गड़बड़ी की बात हो या लैकफेड घोटाले से लेकर नोएडा में प्लाट आवंटन का घपला।

इसी फेहरिश्त में शामिल हैं टीईटी में गड़बड़ी, पंजीरी घोटाला, पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (बीआरजीएफ) में भ्रष्टाचार, सिक्योरिटी नंबर प्लेट का खेल और पुलिस भर्ती व होमगार्ड भर्ती में गड़बड़ी।
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इससे पहले आयुर्वेद घोटाले का मामला हो। ताज कॉरिडोर में गड़बड़ी हो या करोड़ों रुपये की छात्रवृत्ति डकार लेने का मामला। यूपी के इन चर्चित घोटालों में किसी न किसी बड़े सियासी शख्स की ओर अंगुली उठी।

घटनाओं ने अखबारों में खूब सुर्खियां बटोरीं। पर, समय बीतने के साथ ही घोटाले और इनमें शामिल किरदार किसी को याद नहीं रहे। जांच प्रक्रिया इतनी लंबी व उबाऊ हो गई कि लोगों के दिमाग से इनके चेहरे मिटते चले गए।

दावे हकीकत से अलग
सियासत और सियासी लोगों का हाल यह कि सत्ता से बाहर रहे तो सत्ताधारी दल के भ्रष्टाचार के खिलाफ खूब शोर मचाया। लोगों के बीच सरकार में आने पर भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने का ऐलान भी किया। पर, सरकार में आते ही वादा याद न रहा।

इससे भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देने वालों के हौसले तो बढ़े ही सियासत में दखल भी बढ़ गया। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है। पिछले दिनों दिवंगत हो चुके एक आबकारी माफिया का नाम सूबे के पंजीरी घोटाले में भी आया था। शराब घोटाले में भी इस पर खूब आरोप लगे।

सपा ने सत्ता में आने से पहले इसे सबक सिखाने के खूब बयान दिए। नाम लेकर आरोप लगाए। पर, सत्ता में आए तो शराब की लॉटरी फिर इसी के ग्रुप के नाम खुली। बात सिर्फ सपा की नहीं है।

भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप देने की कोशिश कर रहे गिरोहों ने हर सरकार में अपना समान दखल बनाए रखने के लिए साम-दाम, दंड-भेद की नीति अपनाई। इसके लिए दल बदले और निष्ठा भी बदल का खेल भी सामने आया।

सिर्फ ऐलान, सत्ता में आएंगे तो सबक सिखाएंगे
घोटालों पर सियासी लोगों की जुबान बदलने का खेल भी यूपी ने खूब देखा। सत्ता में आने के बाद सपा पूर्ववर्ती बसपा सरकार के भ्रष्टाचार की जांच कराने के लिए आयोग के गठन का वादा भूल गई।

इससे पहले जब सपा सत्ता में थी तो पुलिस भर्ती घोटाले को लेकर मायावती के साथ बसपा के छोटे से छोटे नेता तक ने सपा सरकार पर निशाना साधा था। आरोप मुलायम सिंह यादव तक पर लगाए थे।

ऐलान किया था कि सत्ता में आएंगे तो सबक सिखाएंगे। सत्ता में आने के बाद पुलिस भर्ती घोटाले में और चाहे जो कार्रवाई हुई हो लेकिन बसपा सरकार ने किसी सियासी आदमी को छूने की कोशिश तक नहीं की।

कारिंदों की कहानी
गिनाने के लिए तो यूपी में सियासी संसार के कई दागी चेहरे जेल में हैं। पर, नामों पर गौर करिए तो साफ हो जाएगा कि ये मुख्य किरदार नहीं सिर्फ कारिंदे भर हैं। बसपा सरकार में मंत्री रहे बादशाह सिंह 2012 की शुरुआत में भाजपा में आ चुके हैं।

इस समय वह जेल में हैं। बादशाह सिंह की गिरफ्तारी लैकफेड घोटाले में हुई है। पर, यह सभी को पता है कि बादशाह सिंह एनआरएचएम व लैकफेड घोटाले के आरोप में जेल में बंद पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के कारिंदे के तौर पर काम कर रहे थे। कुशवाहा के कनेक्शन भी सभी को पता है।

नाम न भी लिया जाए तो सभी जानते हैं कि कुशवाहा किस किरदार के लिए काम कर रहे थे। पूर्व विधायक रामप्रसाद जायसवाल भी किरदार के बजाय कारिंदों की श्रेणी में आते हैं।

भ्रष्टाचार के चलते आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल में बंद माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र व चंद्रदेव राम यादव का हाल भी कुछ ऐसा ही है। बाबू सिंह कुशवाहा का परिवार अब सपा में आ चुका है।

कई में लीपापोती तो कई लंबित
बीते दो दशक में सामने आए इन प्रमुख घोटालों में कई में लीपापोती हो चुकी है तो कुछ में ऐसा ही करने की तैयारी है। कुछ की जांच इतनी लंबी व उबाऊ हो चुकी है कि लोगों की इसमें दिलचस्पी ही खत्म होती जा रही है। मनरेगा की जांच चार वर्षों से चल रही है।

जांच के बाद भी घोटाले उजागर हुए। यह जांच कब तक चलेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। पुलिस भर्ती घोटाले की जांच एक तरह से बंद हो चुकी है। अनाज घोटाले की जांच भी काफी लंबी होती जा रही है।

एनआरएचएम घोटाला की जांच भी कब पूरी होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। टीईटी जांच पर लीपापोती लगभग हो चुकी है। बीआरजीएफ घोटाले की जांच की जद घटाई जा चुकी है। लैकफेड की जांच भी लंबित है।