अपनी कमियां छुपाने को तुरंत गिरफ्तारी को दबाब बना रहे लोहिया अस्पताल के कर्मी!

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फर्रुखाबाद: आखिर पूरे जनपद में स्थापित सरकारी उपक्रमों में सबसे ज्यादा कमियां सरकारी चिकित्सालय लोहिया अस्पताल में ही क्यूँ निकलती है| चाहे स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के दौरे हो या प्रशासनिक विभाग के दौरे| कभी किसी अफसर ने लोहिया अस्पताल की व्यवस्था की तारीफ नहीं की| आखिर क्यों? क्या सभी लोहिया अस्पताल के कर्मियों के दुश्मन है या फिर कमी यहाँ के कर्मचारियो और अफसरों की है| वैसे भी इस अस्पताल में वही इलाज को आ रहा है जिसकी जुगाड़ है या फिर जिसके पास पैसा नहीं है| तो फिर क्या अपनी कमियों से पर्दा हटता देख स्वास्थ्य कर्मी मुद्दे को मोड़ देने के लिए हंगामे पर उतर आये है? सवाल कई है और इसके जबाब भी है जनता के पास| मगर हल अब तक नहीं निकला| क्या इस बार भी कोई हल निकलेगा या फिर मुद्दा टाय टाय फिस्स हो जायेगा, चर्चा अब इस बात पर है नगर में|
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नगर मजिस्ट्रेट, नगर क्षेत्राधिकारी पुलिस और मुख्य चिकित्साधिकारी लोहिया अस्पताल में हड़तालियो से वार्ता को पहुचे तो कर्मचारी तुरंत गिरफ्तारी पर अड़ गए| नगर मजिस्ट्रेट और सी ओ सिटी ने दो दिन के अन्दर गिरफ़्तारी करने और समुचित सुरक्षा व्यवस्था का भरोसा दिलाया मगर कर्मचारी मानने को तैयार नहीं हुए| उधर मुख्य चिकित्साधिकारी पर भी दबाब बनाने के लिए हड़तालियो ने जमकर उनके खिलाफ भी नारेबाजी की| सी ओ सिटी ने कहा की दोनों पक्षों के बयान और जाँच के बाद गिरफ्तारी कर दी जाएगी| मगर स्वास्थ्य कर्मी बिना जाँच के केवल ऍफ़ आई आर के बल पर गिरफ्तारी चाहते है| ऐसा कैसे सम्भव है? कल को कोई तीमारदार अपने मरीज की मौत पर हत्या का मुकदमा इन डॉक्टर्स के खिलाफ लिखा देगा तो क्या उस डॉक्टर की गिरफ्तारी हो जानी चाहिए? इस सवाल का जबाब भी स्वास्थ्य कर्मियों को देना होगा| ये गलत परम्परा शुरू हो जाएगी और फिर मुश्किल सरकारी कर्मचारी को ही होगी, शायद अभी ये समझ में नहीं आ रहा है|
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इम्तिहान इस बार दोनों पक्षों का है| सामाजिक संगठनो और डॉक्टर्स दोनों के लिए ये बबाल अब चुनौती है| क्या डॉक्टर्स को समय से ओपीडी में बैठने और पूरा समय मरीज को देखने के लिए मजबूर कर पायेंगे संगठन या फिर हड़ताल और गिरफ्तारी के दबाब के बाद संगठन बैकफुट पर आये जायेंगे| और हमेशा की तरह कोल्लेक्ट्रेट में अफसरों को ज्ञापन सौप फोटो खिचा शाम को अखबारों के दफ्तर में इसे छपाने के लिए गुजारिश करने में ही जीवन काटते और जनता का उपहास बनते रहेंगे|

ये बात ठीक है कि डॉक्टर्स के घर पर संगठन के कार्यकर्ता उन्हें बुलाने गए थे| और वहां नारेबाजी कर दी| किसी के घर पर नारेबाजी करना ठीक है या नहीं ये अलग मुद्दा है| क्योंकि नारेबाजी तो लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है और जब सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह के घर के बाहर हो सकती है तो यहाँ क्यूँ नहीं? लेकिन लोहिया अस्पताल के कर्मचारी और डॉक्टर्स कितने ईमानदारी से काम कर रहे है? बहस इस पर भी हो जानी चाहिए| आस पास के चिन्हित कई मेडिकल स्टोर्स के बिल (जो कि हजारो/लाखो रुपये के है) जिनके माध्यम से लोकल परचेज हो रहा है स्वास्थ्य विभाग की उपरी कमाई का हिस्सा बनते है| किसी गरीब को इस मद से सुविधा मिल जाए तो समझो गजब हो गया|