लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों के हितों की योजनाओं के लिए जिला और राज्य स्तरीय समितियों में अल्पसंख्यक समुदाय के दो सदस्य नामित होंगे। इन्हें सीधे सरकार नामित करेगी, यानी फैसले के पीछे सियासी मायने भी हैं। अब सब-कुछ अफसरों के हाथ में ही नहीं रहेगा।
प्रदेश में 2001 की जनगणना में अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध, पारसी) की आबादी 19.33 फीसद थी। जिसको आधार बनाकर प्रदेश सरकार ने 30 महकमों की 80 योजनाओं का 20 फीसद लाभ अल्पसंख्यकों तक पहुंचाने का फैसला लिया, जिस पर अमल व निगरानी का जिम्मा डीएम की अगुवाई वाली ‘हाई पावर’ समिति को दिया गया है। खास बात यह है कि समिति में अल्पसंख्यक समाज के दो व्यक्ति नामित सदस्य होंगे, जो सरकारी मुलाजिम नहीं होंगे। इन्हें अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री नामित करेंगे। यानी सरकार अल्पसंख्यकों के हितों की योजना का पूरा जिम्मा अधिकारियों के भरोसे नहीं छोड़ना चाहती। वह समुदाय केनुमाइंदों केकंधों पर भी देखरेख का बोझ डालेगी। इस तरीके से सपा के साथ अल्पसंख्यकों के रिश्तों की डोर और मजबूत करने का मकसद आसानी से सध जाएगा। यही नहीं, जिला स्तरीय समिति के कार्य को परखने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनने वाली राज्य समिति में भी अल्पसंख्यक समुदाय के दो सदस्य नामित किए जाएंगे। संबंधित महकमों के प्रमुख सचिवों का दर्जा भी सदस्य का ही होगा। समिति अधिक से अधिक तीन माह में प्रदेश के जिलों में चल रही अल्पसंख्यक हितों की योजनाओं की समीक्षा करेगी और उसके निष्कर्ष के आधार पर ही आगे का फैसले लेगी।
जिला समिति
डीएम-अध्यक्ष, सीडीओ-उपाध्यक्ष, जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी-सचिव, डीडीओ, परियोजना निदेशक, संबंधित योजना के जिला स्तरीय अधिकारियों के साथ राज्य सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री की ओर से नामित अल्पसंख्यक समुदाय के दो व्यक्ति बतौर सदस्य होंगे।
जिला समिति का कार्य
30 महकमों की 80 योजनाओं में से 20 फीसद कार्य जिले में 25 फीसद आबादी वाली बस्तियों में कराना। उसकी निगरानी करना और हर माह संयुक्त रिपोर्ट शासन को भेजना।
राज्य समिति के कार्यं
जिला स्तरीय समितियों के कार्य-कलाप की निगरानी व योजनाओं को समयबद्ध तरीके से लागू करना। हर तीन माह में प्रदेश मुख्यालय पर योजनाओं की समीक्षा करना।