चिट्ठी न कोई संदेश, …जहां तुम चले गए

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सूचना प्रौद्योगिकी युग में नित नए अविष्कारों के बीच मशीनें और रफ्तार भले ही बढ़ी हों, लेकिन मिट्टी और दिल से जुड़ी बहुत सी चीजें गायब हो गई हैं। अब पिया की पाती के इंतजार में कोई दरवाजे पर नजर नहीं टिकाता, मनीआर्डर की आस में बूढ़े मां-बाप डाकिए का इंतजार नहीं करते और तार आने पर अमंगल की आशंका से माथे पर चिंता की लकीरें पड़ने का सिलसिला भी खत्म हो गया है।

अत्र कुशलम तत्रास्तु, आदरणीय पिताजी को सादर चरण स्पर्श। आगे समाचार यह है कि मैं यहां पर ठीक प्रकार से हूं और आशा करता हूं कि ईश्वर की कृपा से आप भी कुशल मंगल से होंगे और बड़ों को नमस्ते, छोटों को प्यार जैसे वाक्य अब कहीं दिखाई नहीं देते।

संचार क्षेत्र में टेलीफोन और मोबाइल क्रांति ने खतों की इस दुनिया को लगभग खत्म सा कर दिया है। पहले लोग दूर दराज रहने वाले अपने नाते रिश्तेदारों को पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय के जरिए संदेश भेजा करते थे और पत्र लिखने की बाकायदा एक शैली होती थी। हर घर में पोस्टकार्ड की लोकप्रियता और सर्वसुलभता का यह आलम था कि सरकार ने दशकों तक पोस्टकार्ड की कीमत में कोई इजाफा नहीं किया।

भारतीय डाक विभाग के विपणन अधिकारी आरके सिंह ने कहा कि मोबाइल क्रांति ने लोगों से लोगों के बीच संपर्क की व्यवस्था को पहले के मुकाबले कहीं अधिक मजबूत किया है। लेकिन इससे डाक विभाग की पत्र व्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है।

उन्होंने कहा कि अब अंतर्देशीय और पोस्टकार्ड की बिक्री लगभग न के बराबर होती है। टेलीग्राम भी अब न के बराबर होते हैं। पहले ये दोनों चीजें डाक विभाग की आय का मुख्य स्रोत हुआ करती थीं। सिंह ने कहा कि हालांकि अब स्पीड पोस्ट और पार्सल ने आय के प्रमुख स्रोत की जगह ले ली है।

विश्व डाक दिवस अंतरराष्ट्रीय डाक यूनियन की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पत्रों के घटते महत्व को लेकर दुनियाभर का डाक तंत्र चिंतित है। यूनेस्को के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय डाक यूनियन हर साल पत्र लेखन प्रतियोगिता का आयोजन करती है और इसके विजेताओं को विश्व डाक दिवस पर सम्मानित किया जाता है। प्रतियोगिता का उद्देश्य डाक लेखन की घटती विधा को बचाना है और यह आयोजन पिछले 35 साल से हो रहा है।