फर्रुखाबाद: 84 कोसी यात्रा के लिये पहले विहिप के लंबे चौड़े बयान। फिर मुलायम से मुलाकात के बाद यात्रा की अनुमति की खबर, फिर सपा सरकार का यात्रा पर प्रतिबंध और उसके बाद विहिप की गगनभेदी हुंकार, फिर अयोध्या छावनी में तबदील, और चप्पे-चप्पे पर पुलिस के बावजूद परिक्रिमा हर कीमत पर करने की विहिप की चेतावनी और आखिर में रामदास वेदांती, अशोक सिंहल, प्रवीन तोगड़िया और नृत्य गोपाल दास जैसे नेता अलग-अलग स्थानों पर नाटकीय ढंग से गिरफ्तार। हो गयी सपा और विहिप की पूरी नूरा कुश्ती?? बहुत देर तक भारी तनाव के बीच हम सब दर्शकों की तरह मानो आडीटोरियम में मुट्ठियां भींचे बैठे रहे, खेल खतम पैसा हजम, आइये अब ताली बजाइये और घर जाइये। तैयार रहिये अगले राउंड का एलान हो चुका है, तारीख अभी नहीं बतायी गयी है। विहिप के संरक्षक अशोक सिंहल घोषणा कर चुके हैं कि केंद्र सरकार अगर 18 अक्टूबर तक संसद में कानून बनाकर श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण का रास्ता नहीं तैयार करती है तो देश में एक लाख स्थानों पर मंदिर निर्माण के लिए संकल्प सभाएं होंगी।
हालांकि राजनीति के पंडित पहले से ही पूरे खल को नूराकुश्ती बता रहे थे, परंतु हमारे देश की धर्मभीरु आम जनता नारों और दावों के बीच सयानों की सुनने को राजी नहीं थी। आखिर उसका परिणाम सामने आ ही गया। सवाल यह है कि आखिर राजनीति के विपरीत ध्रुवों पर बैठे दो दलों सपा और विहिप या उसके पीछे खड़ी भाजपा को इस संयुक्त उपक्रम पर राजी होने की मजबूरी क्या थी? आइये हम आपको बताते हैं कि सपा और विहिप जानबूझ कर हिंदुओं और मुसलमानों की भावनायें भड़काने वाले इस प्राइमरी-राउंड के खेल के लिये राजी क्यों हुए।
कुछ महीनों बाद लोकसभा चुनाव भी होने हैं। मोदी संघ परिवार के लिए आशा के साथ कुछ आशंकाएं भी खड़ी कर रहे हैं। संघ परिवार को लग रहा है कि देश के अन्य राज्यों में मोदी भले ही भाजपा के लिए रास्ता बनाने में मददगार बनते दिखाई दे रहे हों, लेकिन यूपी में वह सियासी समीकरणों को सुधारने के साथ गड़बड़ाने का भी कारण बन सकते हैं। इसलिए परिक्रमा उस कुश्ती की रिहर्सल भर है जो अक्टूबर से सपा और संघ परिवार के बीच होनी है।
संघ परिवार के रणनीतिकार आशंकित हैं कि मोदी के खिलाफ लामबंद मुस्लिम मतदाता अगर उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस के पक्ष में चले गए तो दिल्ली की गद्दी पर भाजपा को बैठाने का भगवा खेमे का सपना बीच रास्ते में टूट सकता है। ऐसी आशंका सपा के रणनीतिकारों को भी परेशान किए है। उन्हें भी लगता है कि मुस्लिम मतदाताओं को अगर कांग्रेस की तरफ जाने से न रोका गया तो उनके राजनीतिक अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो सकता है। साथ ही लोकसभा चुनाव बाद सपा की सियासी राह में भी तमाम रोड़े आ सकते हैं।
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दरअसल, दोनों ही खेमों के रणनीतिकारों को मालूम है कि मंदिर पर वोटों का ध्रुवीकरण तभी होगा, जब कुश्ती सपा व संघ परिवार के बीच हो। चूंकि यूपी में संयोग से ऐसी स्थितियां मौजूद हैं, जिनसे मुसलमानों को कांग्रेस की तरफ जाने से रोका जा सकता है, इसलिए अभी परिक्रमा और अक्टूबर से मंदिर निर्माण के संकल्प के सहारे इस काम को अंजाम तक पहुंचाने की तैयारी कर ली गई। यदि मुलायम मुस्लिम मतों को अपने साथ जोड़े रखना चाहते हैं तो संघ परिवार भी यही चाहता है। जिससे दिल्ली में भाजपा का रास्ता आसान हो जाए। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें हैं। इसलिए यहां की सियासी लड़ाई को मुलायम व संघ परिवार अपने दोनों के बीच समेट लेना चाहते हैं। हालांकि मुलायम 2004 में भी सत्ता में रहे लेकिन तब संघ परिवार की कठिनाई दिल्ली में बैठी अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार थी। संघ परिवार के रणनीतिकार कुछ करते तो निशाने पर केंद्र सरकार भी आ जाती। बाद में बसपा की सरकार आ गई। बसपा के सरकार में रहते वोटों का ध्रुवीकरण हो नहीं सकता था।
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विहिप के संरक्षक अशोक सिंहल घोषणा कर चुके हैं कि केंद्र सरकार अगर 18 अक्टूबर तक संसद में कानून बनाकर श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण का रास्ता नहीं तैयार करती है तो देश में एक लाख स्थानों पर मंदिर निर्माण के लिए संकल्प सभाएं होंगी। अयोध्या में सरयू नदी में एक लाख के करीब श्रद्धालु मंदिर निर्माण को संघर्ष का संकल्प लेंगे। आंदोलन के लिहाज से अक्टूबर विहिप के लिए सबसे बेहतर मौका रहता है। दशहरा से दीवाली तक पड़ने वाले तमाम पर्व और उन पर अयोध्या में जुटने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ इन आंदोलनों को सफल बनाने में मददगार बनती है। साथ ही विहिप व संघ परिवार आसानी से अपना संदेश लोगों के बीच पहुंचाने में कामयाब रहते हैं। जाहिर है कि उस समय सपा सरकार और संघ परिवार के बीच अखाड़े में असली कुश्ती होगी।