नई दिल्ली। आपराधिक मामलों में सजा पाए सांसदों को चुनाव मैदान से दूर रखने की सुप्रीम कोर्ट की कोशिशों पर पानी फिर गया है। केंद्रीय कैबिनेट ने जनप्रतिनिधित्व कानून में बदलाव के फैसले को मंजूरी दे दी है। फैसले के मुताबिक सजा मिलने और वोट देने का अधिकार छिन जाने के बावजूद भी कोई शख्स चुनाव मैदान में उतर सकेगा।
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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62(5) में बदलाव की इजाजत दे दी। इसके तहत वोट देने का अधिकार छिनने के बाद भी चुनाव लड़ने का हक नहीं छीना जा सकेगा। अभी तक जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत निचली अदालत से दोषी सांसद सदन की कार्यवाही में भाग लेते हैं, वोट देते हैं और तमाम दूसरी सुविधाएं भी हासिल करते हैं। दलील ये कि हो सकता है कि ऊपरी अदालत उन्हें निर्दोष करार दे दे।
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कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि अगर किसी आपराधिक मामले में सांसद या विधायक को दो साल से ज्यादा की सजा मिली तो उससे वोट देने का अधिकार छिन जाएगा और वो चुनाव भी नहीं लड़ सकेगा। अगर चुनाव प्रक्रिया के दौरान कोई नेता पुलिस हिरासत में या जेल में चला जाता है तब भी वो चुनाव लड़ने से वंचित हो जाएगा।
मॉनसून सत्र से पहले एक सर्वदलीय बैठक में तमाम दलों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सख्त रुख दिखाते हुए इसे बदलने की अपील की थी। इसी विरोध के मद्देनज़र सरकार जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) में भी बदलाव करेगी। इसके तहत दोषी सांसद को सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने की छूट मिलेगी। हालांकि, वो सदन में वोटिंग में हिस्सा नहीं ले सकेगा। ना ही उसे सदन की दूसरी सहूलियतें हासिल हो सकेंगी।
चूंकि तमाम पार्टियां इसके हक में हैं इसलिए कैबिनेट की हरी झंडी के बाद इस कानून में बदलाव का रास्ता लगभग साफ हो गया है और नया कानून लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला खुद-ब-खुद रद्द हो जाएगा।