नई दिल्ली: जिसने देश को फिगर आइस स्केटिंग में पहला गोल्ड मेडल दिलाया हो और सिल्वर मेडल भी साथ लेकर आया हो ऐसा युवा आम तो हो नहीं सकता। वह बेहद खास है। लेकिन वह अपनी प्रतिभाओं की वजह से स्पेशल नहीं कहलाया जाता। उसकी फिजिकल डिसेबिलिटी ने उसे स्पेशल स्टूडेंट की कैटिगरी दी है। मेहनत और हुनर ने इस 19 साल के युवा को स्पेशल ओलिंपिक में फिगर आइस स्केटिंग में देश का पहला गोल्ड मेडलिस्ट बनाया। लेकिन मेडल की चमक इसकी गरीबी दूर न कर सकी।
नवंबर में आयोजित होने वाली एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में इसे फिर से देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। लेकिन पैसों की कमी इसे अपने कदम आगे बढ़ाने नहीं दे रही। मजबूरन यह स्पेशल गोल्ड मेडलिस्ट अपने पिता के साथ सदर में पटरी लगाकर इयररिंग्स और क्लचर बेच रहा है।
दूसरे गेम्स में भी आगे है: राजकुमार के पिता सदर में पटरी लगाकर इयररिंग्स और क्लचर बेचते हैं। राजकुमार को मिलाकर उनके पांच बच्चे हैं। राजकुमार को बचपन से ही मॉडरेट मेंटल रिटार्डेशन जैसी बीमारी है। उसे आम बच्चों के मुकाबले कुछ सीखने समझने में ज्यादा समय लगता है। जल्दी गुस्सा आ जाता है। उसने पांचवीं क्लास तक ही रेग्यूलर पढ़ाई की।
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इसके बाद उसमें खेलने कूदने की प्रतिभा को दिशा दी राम बाग, पहाड़गंज स्थित दिल्ली प्रतिभा इंस्टिट्यूट फॉर स्पेशल चिल्ड्रन ने। यहां मिली ट्रेनिंग और कोचिंग ने उसे स्पेशल ओलिंपिक तक पहुंचाया। उसके कोच रोहित मनचंदा ने बताया कि राजकुमार सिर्फ आइस स्कैटिंग में ही बेहतर नहीं है, वह हैंडबॉल, फुटबॉल भी अच्छा खेलता है।
ऑस्ट्रेलिया से बुलावा, पर पैसे नहीं: दरअसल गर्मियों में होने वाले स्पेशल ओलिंपिक में विजेताओं को 5, 3 और 2 लाख तक का ईनाम दिया जाता है जबकि सर्दियों में ईनाम राशि करीब 25 हजार के आसपास ही रहती है। राजकुमार को अभी अपनी पहली जीत की रिवॉर्ड मनी भी नहीं मिली। लेकिन उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का फिर से मौका जरूर मिल रहा है।
नवंबर में ऑस्ट्रेलिया में होने वाले स्पेशल ओलिंपिक एशिया पैसिफिक गेम्स में उसे बैडमिंटन के लिए चुना गया है। लेकिन उसके पास खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है। उसे वहां जाने के लिए कम से कम 85 हजार रुपये की जरूरत है। लेकिन उसके लिए 85 हजार की रकम किसी पहाड़ से कम नहीं।
[bannergarden id=”17″][bannergarden id=”18″]नेताओं ने नहीं की कोई मदद: स्पेशल ओलिंपिक भारत, दिल्ली के डायरेक्टर वीरेंद्र कुमार ने बताया कि सरकार की तरफ से ऐसे बच्चों के लिए पांच साल के डिवेलपमेंट प्रोग्राम चलाए जाते हैं और यह प्रोग्राम पिछले साल ही संपन्न हुआ है। इस वजह से राजकुमार को नवंबर में आयोजित होने वाले गेम्स के लिए स्कॉलरशिप नहीं दी जा सकती। हां, कोई उसे स्पॉन्सर करना चाहे तो जरूर कर सकता है। लेकिन फिर भी पूरा पैसा मिलने की उम्मीद कम है।
राजकुमार के पिता ने बताया कि वह जब मदद की गुहार लेकर स्थानीय नेताओं के पास पहुंचे तो उन्होंने भी टाल दिया। लेकिन गरीबी के इस फटे लिबास से राजकुमार के सपने अब भी उम्मीद भरी आंखों से झांक रहे हैं। राजकुमार को इंतजार है उन हाथों का जो उसे अपनी छोटी सी मुट्ठी में आसमान भरने का मौका देगा।