FARRUKHABAD : गंगा में लगातार नरौरा बांध से छोड़े जा रहे पानी व रिमझिम बरसात से गंगा का जल स्तर खतरे के निशान को चूम चुका है। जिससे गंगा की तलहटी में बसे गांवों के ग्रामीणों का हाल बेहाल है। ग्रामीणों को अपनी जान बचाने के लाले पड़ रहे हैं। प्रशासन की तरफ से बाढ़ पीडि़तों के लिए कोई कारगर व्यवस्था न किये जाने से भी बाढ़ पीडि़तों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
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शुक्रवार को गंगा का जल स्तर खतरे के निशान 137.10 मीटर पर पहुंच चुका है। वहीं नरौरा बांध से 2 लाख 17 हजार क्यूसेक पानी फिर छोड़ दिया गया है। वहीं रामगंगा का जल स्तर भी लगातार बढ़ता जा रहा है। शुक्रवार को रामगंगा का जल स्तर 136.15 मीटर पर पहुंच चुका है। जिससे अगले दो दिन तक गंगा का जल स्तर और भी बढ़ने की आशंका जतायी जा रही है। राजेपुर क्षेत्र के दर्जनों ग्राम गंगा के पानी से घिर चुके हैं। बदायूं मार्ग पर कुठिला ताल के पास कमर तक पानी भरा होने से वाहनों का आवागमन बंद हो चुका है। अम्बरपुर डिप पर कमर तक पानी भरे हो से यह भी सम्पर्क मार्ग टूट चुका है। अब लोग तिसौर होते हुए राजेपुर पहुंच रहे हैं। राजेपुर क्षेत्र के गौटिया, अम्बरपुर, चित्रकूट, बलीपट्टी में कमर से ऊपर पानी भरे होने से ग्रामीण बेहद परेशान हैं।
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वहीं शमसाबाद क्षेत्र के ग्राम वाजिदपुर, जमुनिया नगला, कटरी तौफीक, भकुसा, सुल्तानगंज खरेटा सहित कायमगंज क्षेत्र के गन्डुआ, अकाखेड़ा सहित दर्जनों गांव बाढ़ से डूबे हुए हैं। ग्रामीणों को खाना बनाने तक को जगह घरों में नहीं बची है। बाहरी पानी रिसाव करके घरों में भर चुका है। जिससे पक्के मकानों में रखे सामान तक भीग चुके हैं। बाढ़ की विभीषिका थमते न देख ग्रामीणों ने पलायन तेज कर दिया है। ग्रामीण अब ऊंचे स्थानों पर पन्नी इत्यादि डालकर रहना मुनासिब समझ रहे हैं।
लेकिन प्रशासनिक अधिकारी जिन्हें बाढ़ पीडि़तों को सहायता करने की जिम्मेदारी दी गयी है वह कागजों में ही बाढ़ पीडि़तों को पूरा सहयोग दे रहे हैं। हकीकत में बाढ़ के पानी में कोई देखने तक नहीं जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग की टीमें गांवों में तो दूर अस्पतालों तक में दवाई देने से नदारद हैं। लेकिन बाढ़ पीडि़तों को दवाई बांटने के नाम पर बजट का जरूर बंदरबांट शायद हो गया होगा। यही हाल बाढ़ चैकियों पर तैनात किये गये कर्मचारियों का है। कर्मचारी मात्र कागजों में ही तैनात है। बाढ़ चैकियों व बाढ़ पीडि़तों के लिए बनाये गये शरणालयों का भी बुरा हाल है।