उत्तर प्रदेश में किला फतह को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। इसी के तहत कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी मधसूदन मिस्त्री ने कांग्रेसियों को समाजवादी पार्टी सरकार पर हमला बोलने का निर्देश दिया।
इधर, सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने भी सपाइयों का आह्वान किया कि गांव-गांव जाओ और जनता को बताओ कि कांग्रेस ने देश में महंगाई बढ़ाई। भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया। देश की सीमाओं को असुरक्षित बनाया।
सियासी गलियारों में इसे दोनों दलों की सियासी छटपटाहट के रूप में देखा जा रहा है और ये कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों का रिश्ता जल्दी टूट सकता है।
बात सही भी है। जिस तरह उत्तर प्रदेश की राजनीतिक परिस्थिति है, उसमें एक-दूसरे से दूरी दिखाना दोनों दलों की मजबूरी हो गई है। दरअसल, सपा को केंद्र में ज्यादा शक्तिशाली भूमिका में आने के लिए यूपी से पहले की तुलना में ज्यादा सीटों की दरकार है।
पिछली बार सपा को यूपी से 22 सीटें मिली थी। कांग्रेस के हिस्से में 22 सीटें आई थी। सपा ने वैसे तो यूपी से इस बार 60 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य कहां तक हकीकत में तब्दील होता है, यह तो चुनाव नतीजे सामने आने के बाद पता चलेगा।
पर, दिल्ली में प्रभावी भूमिका और तीसरे मोर्चें की सरकार के संभावना में अपनी महत्वपूर्ण संभावना तलाशने के लिए 22 से ज्यादा सीटें तो चाहिए ही। यही मजबूरी कांग्रेस की भी है। केंद्र में तीसरी पारी खेलने के लिए कांग्रेस को यूपी में अपनी मौजूदा सीटों को सुरक्षित रखते हुए इस आंकड़े को बढ़ाना पड़ेगा।
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एक-दूसरे पर हमला बोलना मजबूरी
सपा हो या कांग्रेस दोनों दलों के नेताओं को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि चुनाव में पड़ने वाला वोट सत्ता में बैठे लोगों के कामकाज के पक्ष व विपक्ष में ही पड़ता है।
पर, बात जब इन दोनों दलों की हो तो स्थिति कुछ अलग हो जाती है। देश में कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन संप्रग का शासन है तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्ता में है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों को पता है कि यूपी से उनके लिए वोट सपा सरकार के कामकाज को लेकर नाराजगी से ही निकल सकते हैं। यही मजबूरी समाजवादी पार्टी के सामने भी है।
उसे भी केंद्र सरकार की नीतियों व फैसलों को लेकर जनता की नाराजगी में से ही वोट मिलते दिखाई दे रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल भी कहते हैं कि दोनों दलों की कोशिश ऐसी स्थितियां बना देने की है कि जब रिश्ता टूटे तो लोगों को यह याद ही न आए कि दोनों के बीच कभी दोस्ती भी थी।
यूपी से ही है उम्मीद
दरअसल, समाजवादी पार्टी के पास फिलहाल अभी यूपी छोड़ कहीं मजबूत चुनावी जमीन दिखाई नहीं दे रही है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव कर्नाटक, उत्तराखंड सहित कुछ अन्य राज्यों में चुनावी संभावनाएं तलाश जरूर रहे हैं।
पर, लोकसभा चुनाव तक यूपी के अलावा दूसरे राज्यों में सपा की अच्छी सीटें निकालने लायक हो जाएगी, इसकी बहुत मजबूत संभावनाएं नहीं दिख रही हैं। सपा को यह भी पता है कि उन्हें सत्ता में होने का कुछ नुकसान भी हो सकता है।
इसलिए वह लोगों के गुस्से को केंद्र की तरफ मोड़ना भी चाहती है। यही स्थिति कांग्रेस को भी है। देश के कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार है।
फिर वहां ज्यादा सीटें भी नहीं है। इसलिए उसके रणनीतिकार भी लोगों के गुस्से को सपा सरकार की तरफ मोड़कर अपनी सीटें बढ़ाने की जुगत पर आगे बढ़ना चाहते हैं।