यूपी में जन्मे ममनून हुसैन संभालेंगे पाकिस्‍तान की कमान

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आगरा: ‘नाई की मंडी’ में कोठी नंबर 15/31 अब खास हो गया है। इस कोठी में बचपन का सात साल बिता चुका बच्‍चा अब पाकिस्‍तान के वजीरे आजम (राष्‍ट्रपति) की कुर्सी संभालेगा। आगरा में पैदा हुए ममनून हुसैन को पाकिस्तान का नया राष्ट्रपति चुना गया है। ऐसे में उनके रिश्‍तेदारों और बुजुर्गों की दशकों पुरानी यादें एक बार फिर तरोताजा हो गई है।
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वर्ष 1940-47 तक मंटोला की तंग गलियों में लाल तुर्की टोपी लगाकर दौड़ वाले बच्‍चे को पाकिस्‍तान का राष्‍ट्रपति बनता देख लोग फक्र महसूस कर रहे हैं। कोठी की मेहराबदार दरवाजे, घुमावदार छत और बड़ी-बड़ी कोठरी में उनका बचपन आज भी जिंदा है। ममनून के रिश्‍तेदार आज भी यहां रहते हैं। वे उनसे खतों और फोन के जरिए अब भी संपर्क में हैं।

पाकिस्‍तान के राष्‍ट्रपति चुने जा चुके ममनून हुसैन 1940 में आगरा के ‘नाई की मंडी’ इलाके के छोटी हथाई में पैदा हुए थे। जिंदगी के सात साल के सफर के बाद ममनून अपने दादा उस्‍ताद जफर के साथ पाकिस्‍तान चले गए थे। भारत-पाकिस्‍तान के बंटवारे ने उन्‍हें आगरा और इसकी गलियों से दूर कर दिया था। उस्‍ताद जफर यहां के बड़े जूता कारोबारियों में से एक थे। बाद में पाकिस्‍तान जाकर वहां भी इस कारोबार को खूब बढ़ाया।

ममनून के दादा जफर ने नाई की मंडी की छोटी हथाई में हवेली खरीदी थे। इसी हवेली में वह देश छोड़ने तक रहे। इस हवेली के एक हिस्से में ही जूता कारखाना था। यहां रहने वाले ममनून के 89 वर्षीय रिश्तेदार हाजी निजामुद्दीन बताते हैं, उस्ताद जफर के एक बेटा कल्लू और एक बेटी मुन्नी थी।

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बेटे का निकाह उस्ताद जफर ने उस समय बड़ी धूमधाम से किया था। ममनून की पैदाइश के सात साल बाद ही देश का बंटवारा होने पर उस्ताद जफर और कल्लू आगरा छोड़कर कराची चले गए। वहां अपना कारोबार जमा लिया।
अब इस हवाली के दो हिस्‍से हो चुके हैं। एक में रिश्‍तेदार रहते हैं और दूसरे में एक कारोबारी की बेकरी है। ममनून हुसैन का आगरा कई बार चक्‍कर लग चुका है। वह अपने अजीजों के साथ घर पर ही खाना खाते थे। आज भी उनके रिश्‍तेदारों में चचेरे भाई, भांजा, नवासे, भाई के सुरालीजन और दूर के रिश्‍तेदार रहते हैं।
ममनून के बुलावे पर चचेरे भाई उस्‍मान कुरैशी पाकिस्‍तान जा चुके हैं। उस्मान ने बताया उनके पिता इस्लाम पहलवान और ममनून के पिता कल्लू चचेरे भाई थे। ममनून उनके चचेरे भाई हैं।