नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय महिला आयोग की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि शादी के लिए लड़कियों की उम्र तय नहीं की जा सकती। राष्ट्रीय महिला आयोग ने दो नाबालिग लड़कियों की शादी को दो उच्च न्यायालयों द्वारा वैध करार दिए जाने के फैसले को चुनौती देते हुए कहा था कि यह बाल विवाह निषेध कानून के तहत एक अपराध है।
दरअसल, आठ साल पहले दिल्ली और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कम उम्र में शादी करने के दो मामलों की सुनवाई के दौरान कहा था कि इन दोनों मामलों में नाबालिग लड़कियां अपने प्रेमी के साथ स्वेच्छा से गई थीं। इसके बाद महिला आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि इन फैसलों से नाबालिगों की शादी वैध हो जाएगी। उसने सर्वोच्च न्यायालय से लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर मौजूद विभिन्न कानूनों को देखते हुए एक कानून बनाने को कहा था, जिससे कि एक लड़की की शादी की सही उम्र क्या हो, इसका पता चल सके। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लड़कियों की शादी की ऐसी उम्र तय करना मुश्किल है जो हर मामले में फिट बैठे।
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न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि दोनों मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले में कुछ भी गलत नहीं है। 5 अक्टूर 2005 को दिल्ली उच्च्ा न्यायालय और 1 फरवरी 2006 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने नाबालिग लड़कियों को अपने प्रेमी से शादी करने की अनुमति दी थी। साथ ही अदालत ने उनके प्रेमियों के खिलाफ पुलिस में दर्ज अपहरण के मामलों को भी खारिज कर दिया था। खंडपीठ ने कहा कि हम कैसे कह सकते है कि सभी मामले एक ही फॉर्मूला में फिट बैठना चाहिए।