है न कमाल? पुलिस वाले पौने दो रुपये प्रतिदिन के भत्ते से दौडाते हैं बाइक

Uncategorized

Police on bike copyफर्रुखाबाद: पुलिस विभाग की ओर से सिपाहियों को साइकिल भत्ता के नाम पर महीने में 50 रुपये मिलते हैं। बावजूद इसके वे बाइक से चलते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी आमदनी क्या है।

दो दशक पूर्व सिपाहियों का साइकिल भत्ता 40 रुपये था। उस समय सिपाही क्या दारोगा भी साइकिल से ही चलते थे। आमदनी का जरिया भी कोई खास नहीं था। बाद में दस रुपये भत्ता बढ़ा दिया गया। सिपाहियों के हाथ से साइकिल निकल गई। वे बाइक पर सवार हो गए। भत्ता जस का तस रह गया। भत्ता देने के नियम में बदलाव भी हुआ। तय किया गया कि कार्यालय में काम करने वाले सिपाहियों को भत्ता नहीं मिलेगा। कारण कि उन्हें तो कहीं भागदौड़ करनी नहीं पड़ती। इसके विपरीत थाना व चौकी पर तैनात सिपाहियों को क्षेत्र में गश्त लगानी पड़ती है। सिपाहियों का कहना है कि हर घटना के बाद सबसे पहले उन्हें मौके पर पहुंचना पड़ता है। अगर थोड़ी भी देर होती है तो अधिकारियों की डांट-डपट से दो-चार होने के लिए तैयार रहना पड़ता है। बाइक चलाना उनकी मजबूरी है। इधर आमजन का मानना है कि आधुनिकता और भौतिक लालसा की अंधी दौड़ में पुलिस महकमा भी पीछे नहीं रहा। यही वजह है कि अब थानों व पुलिस चौकियों में साइकिलों की जगह महंगी बाइकों ने ले लिया है। दारोगा ही नहीं वरन सिपाही भी बाइकों की सवारी करने लगे हैं।

[bannergarden id=”8″][bannergarden id=”11″]
कहां से आता होगा खर्च : साइकिल की सवारी कम खर्चीली होती है। यह हर कोई जानता है। हालांकि समय और श्रम इसमें अधिक लगता है। रही बात बाइक से सवारी की तो लाजिमी है कि पेट्रोल की बढ़ती कीमत का असर जेब पर पड़ेगा ही। फिर इसके लिए आमदनी का जरिया भी तलाशना पड़ेगा लेकिन उसमें कोई दिक्कत नहीं है। खाकी अगर शरीर पर है तो किस बात की चिंता। आमदनी के नए रास्ते भी मिल ही जाते हैं। इसमें भी सबसे बेहतर तरीका है कमाऊ स्थान पर पिकेट ड्यूटी। रात हो या दिन कोई भी भारी वाहन का चालक बगैर पिकेट ड्यूटी वालों की जेब गर्म किए आगे नहीं जा सकता है। कई बार तो ऐसा भी देखने को मिलता है कि अगर किसी चालक ने चालाकी दिखाई तो तुरंत उसका पीछा कर लिया जाता है।