मुलायमियत-मुस्कराहट भी रमजान की इबादत है

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FARRUKHABAD : रमजान के महीने को इबादत का महीना यूं ही नहीं कहा जाता। रमजान वक्त के हर पल को इबादत का पल बना देता है। रोजा रखने वाले की हर हरकत, उसकी प्रत्येक गतिविधि इबादत की पेशगी बन जाता है । सिर्फ रोजे का वक्त -यानी सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त तक ही इबादत में शुमार नहीं होता, बल्कि रात का वह वक्त भी प्रार्थनामय ही होता है जिसमें खाने- पीने की इजाजत होती है। चारों ओर ऐसा मंजर दिखाई देता है जैसे रमजान के चाहने वाले इसमें रम कर अपनी जिंदगी और मौत दोनों को कामयाब बना लेना चाहते हों। इसीलिए इस्लाम के मानने वाले इस महीने को इबादत का खजाना कहते हैं ।

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इस्लामी वर्ष का सबसे पाक व मुकद्दस महीना है। हर इबादतगार दोनों हाथों से पुण्य लूटना चाहता है -राम, रब, अल्लाह, गॉड -उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए -अर्थ नहीं बदलता -उसी नाम की लूट है लूट सके तो लूट, अंत समय पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट।
आम तौर पर रमजान को खाने-पीने से जोड़ कर देखा जाता है। यह बात मुस्लिम और गैर मुस्लिम दोनों पर लागू होती है कि दिन भर भूखे-प्यासे रहो और रात को जम कर खाओ, जबकि इस्लाम की दृष्टि से यह उचित नहीं है। सच तो यह है कि इस्लाम में खुद खाने से ज्यादा दूसरों को खिलाने की रवायत है। इस्लाम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जो व्यक्ति किसी दूसरे को इफ्तार या खाना खिलाता है, उसे भी रोजेदार के बराबर सवाब (पुण्य) मिलता है ।

कम खाना भी इबादत में शामिल है। कम खाने से तात्पर्य केवल जरूरत भर खाने से है, ऐसा न हो कि दिन भर भूखे-प्यासे रह कर रोजा रखा और रात को छप्पन भोग की दावत । रमजान का मूल अर्थ केवल भूखा-प्यासा रहना ही नहीं है, बल्कि उस भूख को जानना भी है जिसे दुनिया के गरीब, बेबस, मजलूम और मुफलिस झेल रहे हैं। उनकी भूख को समझना तथा उस ओर ध्यान देकर उनकी भूख मिटाने की कोशिश करना भी रमजान की ही इबादत है। और इस्लाम की मूल भावना में सम्मलित है।

रमजान का मूल मंत्र है, ‘कम खाना और गम खाना।’ गम खाने का अर्थ है अपनी नफस (इंदियों) पर काबू रखना। जैसे काम, क्रोध, मद, लोभ आदि। अर्थात स्वयं पर नियंत्रण रखना। किसी को गलत न बोलना, सख्त जबान में बात न करना, बात-बेबात पर गुस्सा न करना, संयम का पालन करना तथा खुद को जब्त करना भी रमजान की इबादत में शुमार होता है ।

अपने आप को कोमल व विनम्र बनाना तथा सभी के साथ प्यार से पेश आना, ना कि भूख-प्यास की सख्ती से झुंझला कर बेकाबू हो जाना तथा चिड़चिड़ापन दिखाना, चेहरे की कोमलता और मुस्कराहट भी रमजान की इबादत में शामिल है।

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जहां तक खाने का संबंध है, तो रमजान में वैसे भी कम ही खाया जाता है, क्योंकि कुदरती तौर पर ही भूख कम हो जाती है तथा खाने -पीने से मन हटकर इबादत में लग जाता है। इसी को कहा गया है कि रोजे का मतलब है : ‘कम खाओ गम खाओ।’

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो रमजान का महीना स्वास्थ्य के लिए ठीक होता है, क्योंकि भूख से कुछ कम खाना शरीर के लिए लाभदायक होता है। तिस पर इस महीने नमाज की कसरत भी बढ़ जाती है। पांच वक्त की नमाज के साथ-साथ तराबियां केवल रमजान के महीने में ही पढ़ी जाती हैं। जो शरीर को स्वस्थ तथा लचीला बनाने के साथ- साथ पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखती हैं।

इस तरह इस्लाम के अनुयायियों के लिए इसे मानना दीन और दुनिया दोनों के लिए फायदेमंद होता है। इबादत भी और स्वास्थ्य भी।