इलाहाबाद : हाईकोर्ट ने प्रदेश में तालाबों के अतिक्रमण को गंभीरता से लिया है। अदालत ने कहा है कि इसे रोकने के लिए विशेष कानून बनाया जाना चाहिए और तालाबों की सुरक्षा के लिए उप्र जमींदारी विनाश अधिनियम में विशेष उपबंध किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुनील अंबवानी तथा न्यायमूर्ति भारत भूषण की खंडपीठ ने आजमगढ़ में एक पोखरी पर कब्जा हटाए जाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर यह आदेश पारित किया। कोर्ट ने कहा कि तालाबों के अतिक्रमण हटाने की धारा 122 बी की कार्यवाही में काफी विलंब हो रहा है जो पर्यावरण जल संरक्षण व भूगर्भजल स्तर बनाए रखने की कार्यवाही के लिए उचित नहीं है।
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कोर्ट ने कहा कि लोग तालाबों पर कब्जा कर लेते हैं और उसे खाली कराने की लंबी प्रक्रिया के चलते पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है। कोर्ट ने महाधिवक्ता से गांव या कस्बे के लोगों के हितों व पर्यावरण की रक्षा के सुझावों के साथ कोर्ट में पक्ष रखने का अनुरोध किया है। याचिका की सुनवाई की तिथि 25 जुलाई नियत करते हुए कोर्ट ने प्रश्नगत मामले में एसडीएम को दो माह में कार्यवाही पूरी करने का निर्देश दिया है। यह याचिका आजमगढ़ के गांव पवई लाडपुर की पोखरी पर कब्जे से संबधित है। फूलमती व अन्य की ओर दाखिल इस याचिका में कब्जा हटाने की मांग की गई है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीमकोर्ट ने हिंचलाल तिवारी केस में जलाशयों के अतिक्रमण हटाए जाने का आदेश दिया है किंतु मौजूदा कानून में बेदखली कार्यवाही में देरी हो रही है। गांव के लिए तालाबों का महत्व है। इनके अतिक्रमण से जलस्तर में गिरावट हो रही है और पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। ऐसे में विशेष कानून बनाकर अतिक्रमण हटाए जाने की त्वरित व्यवस्था दी जाए।