सरकार क्यूँ नहीं चाहती उत्तराखंड में शव तलाशे जाएं?

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Ekta Trustअजब तमाशा है| मिट्टी (शव) पर भी राज्य सरकार का दिल नहीं पसीज रहा। केदारघाटी में शवों को तलाशने के लिए राज्य सरकार ने पहले तो सूरत (गुजरात) की एक संस्था को बुला लिया, लेकिन अब बुलावे से ही मुकर गई। बगैर कोई शुल्क लिए सेवा के लिए देहरादून पहुंची 14 सदस्यीय इस टीम के पास इन परिस्थितियों में काम करने का खासा अनुभव है। टीम तीन दिन से सरकारी गलियारों की खाक छान रही है, पर ‘सरकार’ हैं कि पास फटकने ही नहीं दे रहे। टीम का हर दिन इस आस में कट रहा है शायद आज उन्हें सेवा का अवसर मिल जाए।

एक तरफ सरकार उन्हें बुलावा न भेजने की बात कर रही है, दूसरी तरफ उसने ही टीम के खाने और ठहरने की व्यवस्था की हुई है। सरकार के रवैये से टीम आहत है। हालांकि इसके कारणों पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है, लेकिन सियासी गलियारों में इसके पीछे गुजरात फैक्टर देखा जा रहा है।

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17 जून की तबाही के बाद पूरे केदारघाटी में जहां-तहां शव बिखरे पड़े हैं। मलबे में कितने शव दबे होंगे, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल। डॉक्टर और पुलिस की टीम वहां से जाने से हाथ खड़े कर चुकी है। महामारी का खतरा मंडरा रहा है, वो अलग। सरकार अब तक केवल 36 शव ही ढूंढ पाई, जबकि मरने वालों की संख्या हजारों में आंकी जा रही है। इस चुनौती से कैसे पार पाया जाए, इसको लेकर सरकार के हाथ-पांव फूले हुए हैं। इन हालात के बीच सूरत से सांप्रदायिक सौहार्द का पैगाम लेकर एक टीम सेवा के लिए उत्तराखंड आई, लेकिन उनकी भावनाओं से ही ‘छल’ हो गया।

केदारघाटी में जल प्रलय का पता चलने पर सूरत की एकता ट्रस्ट नामक संस्था ने 25 जून को मुख्यमंत्री को मेल के जरिए आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मलबे में दबे शवों को तलाशने और उनका अंतिम संस्कार करने की इच्छा जताई। उन्होंने मुख्यमंत्री को बताया कि संस्था के पास इस काम का 30 साल का अनुभव है। गुजरात के भुज में आए भूकंप और चेन्नई के नागौर में सुनामी में मारे गए लोगों के शव ढूंढने में भी उन्होंने मदद की थी।

संस्था के प्रस्ताव पर गृह विभाग के प्रमुख सचिव ओम प्रकाश के कार्यालय से 26 जून को इस संबंध में संस्था को मेल किया गया। जिसमें तबाही वाले केदारघाटी के हालात बयां करने के साथ ही यह भी जिक्र किया गया कि संस्था की सेवा लिए जाने की स्थिति में उन्हें हवाई यात्रा और सपोर्टिग मैन पावर उपलब्ध कराई जाएगी।

संस्था ने इस पर हामी भरी तो प्रमुख सचिव गृह के कार्यालय से अगले ही दिन यानि 27 जून को संस्था को एक और मेल किया गया। इसमें संस्था के त्वरित रेस्पांस पर धन्यवाद जताया गया। साथ ही जिक्र किया गया कि टीम सदस्यों को देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डे से आपदा प्रभावित क्षेत्र तक हवाई मार्ग से ले जाने और यहां प्रवास के दौरान जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। विषम क्षेत्र का हवाला देकर संस्था को टीम सदस्यों के स्वास्थ्य पहलुओं पर भी गौर करने का सुझाव दिया गया।

संस्था के चेयरमैन अब्दुल रहमान बताते हैं कि प्रमुख सचिव गृह के बुलावे उनकी टीम के सदस्य सूरत से चलकर 28 जून को हवाई मार्ग से देहरादून पहुंचे। उन्होंने प्रमुख सचिव गृह को टीम के जौलीग्रांट पहुंचने की जानकारी दी तो उनसे वापस लौटने का आग्रह किया गया। चेयरमैन के अनुसार शासन ने वापसी के लिए हेलीकॉप्टर का इंतजाम करने के साथ ही यहां आने पर हुआ खर्च लौटाने का ऑफर भी दे डाला। अब्दुल बताते हैं कि चूंकि वह पैसे के लिए नहीं, बल्कि सेवाभाव से अपने खर्चे पर यहां आए हैं, लिहाजा उन्होंने प्रमुख सचिव को टीम की भावनाओं से अवगत कराकर सेवा का मौका देने की गुजारिश की।

इसके बाद पुलिस महानिरीक्षक स्तर के एक अधिकारी ने कुछ पुलिसकर्मियों को जौलीग्रांट उनके पास भेजा, जो उन्हें ऋषिकेश में त्रिवेणीघाट स्थित ओंकार नंदा गंगा माता मंदिर धर्मशाला में ठहराया गया। 28 जून से टीम केदारघाटी में रवानगी के आदेश का इंतजार कर रही है। दल में शामिल डॉ. इमरान मुल्ला दो दिन से सीएम व अधिकारियों से मिलने के लिए सचिवालय के गलियारों धक्के खा रहे हैं, लेकिन मुलाकात नहीं हो पा रही है। स्थानीय एक एनजीओ के माध्यम से भी संस्था ने सरकार तक अपनी सेवाभावना पहुंचाने की कोशिश की, पर इंतजार खत्म नहीं हुआ। टीम लीडर अब्दुल का कहना है कि उनकी समझ में नहीं आ रहा कि बुलाने के बाद सरकार उन्हें केदारघाटी क्यों नहीं भेज रही।