FARRUKHABAD : आम तौर पर पुलिस की बोलचाल तो सभी जानते ही हैं। जल्द कोई खाकी के चक्कर मे पड़ना नहीं चाहता क्योंकि भय लगता है और लगे भी क्यों ना छुटते ही गालियां जो मिलने लगती है। बात बात पर अन्दर कर देने कि धमकी मिलती सो व्याज में। जब थाना ,कोतवाली जाने की बात हो तो गला सूखना लाजमी है। लेकिन एक चोर के साथ एसा नही हुआ, पुलिस जब चोर को लेकर कोतवाली पहुंची तो अधिकारी ने उसे इज्जत के साथ बैठाया औरे गर्म समोसे सर्व किये। यह सब तो ठीक था लेकिन कोतवाली मे अन्य कई लोगो की भावनाये भी रौंदी गयी जो इस मामले से जुडे थे।
घटना के अनुसार शहर कोतवाली क्षेत्र के ग्राम पपियापुर मे मानसिंह जाटव के घर चोरी के मामले मे एक किशोर चोर को पकड लिया, पहले उस पर जमकर हाथ साफ किये, जूतों की माला पहनाई, एक दिन तक बन्धक बनाकर पीटा और जब माल नही मिला तो चोर के सिर पर चौराहा बना कर मामले कि जानकारी पुलिस को दी, भरोसा था कि माल मिल जायेगा। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को भांपा। उन्होंने मन ही मन लड्डू फोड़ते हुए सोचा कि अब तो अधिकारियों से वाहवाही लूटने का मौका भी मिल जायेगा। पुलिस ने मानसिंह जाटव से कहा कि वह लोग खुद ही अपनी बाइक पर चोर को पकड़कर कोतवाली ले चलें व साहब के सामने पेश करेंगे। एक तो चोर जेल जायेगा, दूसरा हम लोगों को भी नम्बर बढ़ाने का मौका मिलेगा, तुम्हारा भी माल मिल जाने की संभावना बढ़ जायेगी। तो वहीं चोर मन ही मन घबरा रहा था। एक तो पहले से ही जनता ने इतना पीटा था कि वह चल नहीं पा रहा था, दूसरा पुलिस की पिटायी का डर सताने लगा था। खैर तीन चार मोटरसाइकिलें भरभराती हुईं कोतवाली के अंदर आ घुंसीं, किसी पर तीन सवारी बैठी थीं तो किसी पर चार। नियम कानून फिर एक बार टूट गया।
पीछे से हल्की से मुस्कराहट चेहरे पर लिये आईटीआई चौकी के दो सिपाही भी अपनी सफलता का इनाम पाने की इच्छा से कोतवाली में आ धमके। जैसे ही चोर को बाइक से उतारा तो मीडियाकर्मियों से आमना सामना हो गया। सवाल जबाब शुरू हो गये। मीडिया कर्मियों ने सवाल किया सिर पर चौराहा बनाया है तो क्या अवैध सम्बंधों का मामला था, पीछे से आवाज आयी, अरे साहब इसके तो जूतों की माला भी पहनाई गयी। बहुत मारा भी लेकिन साले ने माल का पता नहीं बताया। तो मजबूरन पुलिस को इसे दे रहे हैं। अब तो इसका बाप भी बतायेगा। तभी दूसरे मीडियाकर्मी ने सवाल दागा, यह तो मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है, वह भी पुलिस के सामने। एक असहाय नाबालिग किशोर को चोरी के आरोप में बंधक बनाकर पीटना, उसके सिर के बाल काटकर चौराहा बनाना मानवाधिकार के दायरे में आता है। इसमें तो तुम लोगों पर कार्यवाही हो जायेगी। दोषी तो पुलिसकर्मी भी हैं, जो उसे खुलेआम चौराहा बना सिर लेकर घटना स्थल से कोतवाली तक लाये, तो क्या यह बच जायेंगे। इतना कहने की देर थी तो कोतवाली में अचानक परिवर्तन की स्थिति आ गयी। जो पुलिसकर्मी अधिकारियों से वाहवाही लूटने की इच्छा में आये थे वह दो कदम पीछे हटकर खड़े हो गये। बचने के लिए मीडियाकर्मियों की हां में हां मिलाने लगे।
नहीं साहब इन लोगों ने बिलकुल गलत किया, चोर को पीटना नहीं चाहिए था, जबकि चोर को पकड़ने के बाद पुलिस को सौंप देना चाहिए था। मीडियाकर्मियों के सवालों की भनक मौके पर मौजूद कोतवाली के एक बड़े अधिकारी के कानों में गयी तो उन्होंने स्थिति को समझा और मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों से कहा कि तत्काल चोर के साथ मारपीट करने वाले सभी लोगों को कोतवाली कार्यालय में बिठाओ, इन पर कार्यवाही होगी। चोर को उनके सामने पेश करने के आदेश दिये। १० मिनट में ही साहब की गुर्राहट के आगे पुलिसकर्मियों ने चोर को पुलिस अधिकारी के सामने पेश किया। तब उसके सिर पर चौराहा सवार था। एक तरफ अधिकारी थे तो दूसरी तरफ मीडियाकर्मी जो बार बार पुलिस को मानवाधिकार का डन्डा दिखा रहे थे। इसी बीच चोर पुलिस अधिकारी के सामने पेश हुआ और वह जमीन पर बैठ गया। इतना करते ही पुलिस अधिकारी ने तत्काल उससे कहा कि अरे भाई साहब नीचे क्यों बैठते हो, आप ऊपर बैठिए। उसे ऊपर कुर्सी पर बिठा दिया। तत्काल फरमान जारी हुआ कि इसको टोपी या अंगोछा उपलब्ध कराया जाये। जिससे इसका चौराहा कोई देख न सके, मानवाधिकार थोड़ा दूर ही रहे। फिर चोर के सामने ही पुलिस अधिकारी ने सिपाहियों को बुलाया, कहा कि तुम्हें जरा भी तमीज नहीं। चोर को सीधा घटना स्थल से कोतवाली तक ले आये। वह भी खुला चौराहा लेकर। रास्ते में किसी नाई से पूरा घोटा कराकर लाते। जमकर लताड़ लगी, फिर नम्बर आया चोर को पीटने वाले लोगों का। सिफारिश पर सिफारिश लगना शुरू हुई लेकिन पुलिस कुछ सुनने को तैयार नहीं। काफी देर के बाद पुलिस ने गरमा गरम समौसे आरोपी के लिए मंगाये व खाने के लिए दिये।
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पूछा गया तो पुलिस बोली, यह तो मानवता है, दो दिनों से भूखा है बेचारा, खाना तो देंगे ही, फिलहाल जो हुआ वह हर किसी के लिए अच्छा नहीं था। चोर इस दहशत में मरा जा रहा था कि आखिर पुलिस उससे इतनी सहानुभूति क्यों दिखा रही है। आरोपी को पकड़कर लाये लोग इस बात को लेकर हैरान थे कि यह कौन सा कानून है कि चोर पकड़कर लाओ और हवालात में भी चोर को नहीं वल्कि खुद जाना पड़ेगा। पुलिसकर्मियों की भावनायें भी कोसों दूर जा गिरीं। जो उसे कोतवाली लाये थे। हर वाकया के पीछे दहशत थी तो सिर्फ मानवाधिकार की।