फर्रुखाबाद: यह डायलॉग किसी बंबइया हिंदी फिल्म के खलनायक का नहीं, जनपद में शिक्षा विभाग से सम्बंधित एक उच्चाधिकारी का है। और यह डायलॉग किसी चपरासी के लिए नहीं, अपने अधीनस्थ अधिकारियों के लिए उनका यह तकिया कलाम है।
जनपद में शिक्षा विभाग से सम्बंधित एक अधिकारी आजकल अपनी कार्यप्रणाली को लेकर काफी चर्चा में है। घूस, कमीशन और शिक्षकों के वेतन तक पर डाके के बाद अब आजकल उनकी भाषाशैली उनकी ख्याति में चारचांद लगा रही है। हाल ही में उन्होंने एक नया तकिया कलाम ‘‘कुत्ते की औलाद’’ अपनाया है। इसका उपयोग करने में वह छोटे कर्मचारियों के अलावा अधीनस्थ अधिकारियों तक से कर देते हैं। पीछे नहीं, मुहं पर! अब इसे अधीनस्थ अधिकारियों के गले तक भ्रष्टाचार में डूबे होने के कारण मर चुकी गैरत को कहें या अधिकारी का इकबाल। जबाब देने की हैसियत में कोई नहीं है।
विभाग के अंदर दबी जुबान से चल रही चर्चाओं का खुलासा तब हुआ जब एक विभागीय अधिकारी अपने साथ हुए इस भाषाई दुर्व्यवहार का दुखड़ा साथियों के सामने रो बैठा तो अन्य साथियों ने भी साहब के इस तकिया कलाम की पुष्टि की। बताते हैं कि साहब पीठ पीछे तो मां बहन तक को नहीं छोड़ते।