विकास पुरुष या प्रचंड हिंदुत्‍व: क्‍या हैं वो बड़े कारण जिन्होंने दी मोदी को सफलता

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नई दिल्ली : आखिरकार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान का नेतृत्व बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने सौंप आज सौंप ही दिया है। इसके बाद देश में मोदी को लेकर चर्चाओं का दौर आरंभ हो चुका है| फिलहाल बीजेपी में इस समय जश्न का माहैल है वहीँ राजनैतिक विश्लेषक इसे भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का अवसान और नये मोदी युग की शुरुआत मान रहे हैं|

Modi 11मोदी आज बीजेपी के अन्दर ही एक वट वृक्ष बन गए हैं| केंद्र में अटल बिहारी बाजपाई जे नेत्रत्व में सरकार बना चुकी भाजपा की निगाहें आज मोदी पर टिक गयीं हैं। आज देश में लोग बीजेपी नहीं, मोदी को हिंदुत्व की अस्मिता का रक्षक मान रहे हैं| जनता के नज़र में मोदी कुशल नेता है। आखिर वो कौन से कारण है जो मोदी को तेजी से लोकप्रियता प्रदान कर रहे हैं| लोकप्रियता का एक कारण ये भी है कि गुजरात में मोदी ने विकास की झड़ी लगा दी टाटा, अदानी सहित कई देशी विदेशी कंपनियों ने गुजरात में निवेश किया जिससे बेरोजगारी कम हुई और सम्पन्नता आयी| टाइम्स पत्रिका जिसने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अंडरएचीवर कहा था उसने ही ‘मोदी मीन्स बिजनेस’ जैसे सम्मान के साथ मोदी क गुणगान किया था| परंतु मोदी की लोकप्रियता के मूल में प्रचंड हिंदुत्व छुपा है। गुजरात दंगे के बाद से मोदी की सफलता की शुरुआत होती है| दंगों के बाद मोदी समर्थको की संख्या बढ़ती चली गयी गुजरात में जो कुछ हुआ उससे मोदी के जनसमर्थन में काफी इजाफा हुआ|

नरेन्द्र भाई मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं| एक बेहद साधारण गुजराती परिवार में जन्में नरेन्द्र ने आजीवन अविवाहित रहकर देश-सेवा का व्रत लिया और विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति का आरंभ किया और कालांतर में संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बने। देश में हिंदुत्व की लहर जिस सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा से जगी उसमें मोदी लालकृष्ण आडवाणी के सारथी रहे। केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद उन्हें गुजरात राज्य की कमान सौंपी गयी। अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमन्त्री बने थे। मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने पहले दिसम्बर 2002 और उसके बाद दिसम्बर 2007 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल किया। तब से लेकर अब तक वे तमाम आरोप-प्रत्यारोपों के बावजूद गुजरात प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। एक समय ऐसा था जब मोदी बड़े भाई के साथ चाय की दुकान लगाते थे लेकिन अपने जिद्दी स्वाभाव के चलते न सिर्फ गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया बल्कि गुजरात के मुख्यमंत्री बन बैठे| नरेन्द्र मोदी के व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग हैं| मोदी ने अपने कार्यकाल में गुजरात में कई ऐसे हिन्दू मन्दिरों को भी ध्वस्त करवाने में कभी कोई कोताही नहीं बरती जो सरकारी कानून कायदों के मुताबिक नहीं बने थे। हालाँकि इसके लिये उन्हें विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा परन्तु उन्होंने इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं की; जो उन्हें उचित लगा करते रहे।

गुजरात में नरेन्द्र ने बीजेपी को मजबूत करने में बड़ी भूमिका अदा की। शंकरसिंह वघेला का मजबूत जनाधार नरेन्द्र मोदी की रणनीति और कंधो पर ही टिका था। उसी बीच बीजेपी ने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा घोषित कर दी जिसमें बीजेपी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने मोदी को अपना सारथी नियुक्त कर दिया। ठीक इसी तरह एक और रथ यात्रा कन्याकुमारी से लेकर काश्मीर तक नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। दोनों यात्राओं से जहाँ बीजेपी को लाभ हुआ वहीँ मोदी का भी राजनीतिक कद इतना ऊँचा हुआ की शंकरसिंह वघेला उसके आगे बौने पड गए और पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बना दिया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुलाकर भाजपा में संगठन का दायित्व सौंप दिया गया।

2002 में गोधरा कांड के बाद समूचे गुजरात में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले 1180 लोगों में अधिकांश संख्या मुस्लिमों की थी। इसके लिये न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया। विरोधी दल कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की माँग की। मोदी ने गुजरात की दसवीं विधान सभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। गुजरात में दोबारा चुनाव हुए जिसमें बीजेपी ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल 182 सीटों में से 127 सीटों पर जीत हासिल की। अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानाना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं। यह विशेष जाँच दल दंगें में मारे गये काँग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था। दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एसआईटी की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। मोदी अपने बचाव में काफी मजबूत तर्क देते रहे हैं जैसे कि गुजरात में और कब तक गुजरे ज़माने को लिये बैठे रहोगे? यह क्यों नहीं देखते कि पिछले 10 वर्षों में राज्य ने कितनी तरक्की की? इससे मुस्लिम समुदाय को भी तो फायदा पहुँचा है।

मोदी जिस चीज को ठान लेते है उसे पूरा करके ही दम लेते है| इसका उदाहरण संजय जोशी विवाद है, मोदी ने जोशी को किनारे लगा कर ही दम लिया| सूत्र बताते हैं की मोदी ने एक कथित सीडी के ज़रिये संजय जोशी को इतना मजबूर कर दिया की जोशी को पद से इस्तीफा देना पड़ा| इसके बाद से तो दोनों एक-दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते| बाद में जोशी निर्दोष साबित हुए और गडकरी के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद 2011 में जोशी को यूपी में विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी चुनाव प्रभारी के तौर पर दी| मोदी इससे इतने नाराज हुए कि वो यूपी में 2012 में हुए चुनावों के दौरान पार्टी का प्रचार करने तक नहीं गए| मुंबई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने के लिए मोदी ने संजय जोशी का इस्तीफा तक दिलवा दिया| इससे ये साबित होता है की मोदी ने कभी भी अपने दुश्मनों को माफ़ नहीं किया उनको मिटाकर ही दम लिया| मोदी वहीँ है जिन्होंने गोधरा की धरा को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बना दिया था| आज यदि बीजेपी को देखें तो जिस पार्टी का गठन हिंदुत्व के मुद्दे पर हुआ था वो आज मोदीत्व के सहारे चल रही है| देखना ये होगा कि 2014 लोकसभा चुनाव में मोदीत्व क्या गुल खिलाता है|