सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि स्कूलों में पढ़ाने का अधिकार सिर्फ प्रशिक्षित टीचरों के पास ही है। राज्य में बिना शैक्षिक योग्यता को आधार बनाए एड हॉक प्राइमरी टीचरों की भर्ती करने के मामले में सर्वोच्च अदालत ने गुजरात सरकार से जवाब तलब करते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस बीएस चौहान और दीपक मिश्रा की बेंच ने इस तरह के सिस्टम पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि इस तरह के कदम से पूरा शिक्षा तंत्र बर्बाद हो रहा है और इस प्रदूषित एप्रोच को किसी भी हालत में अनुमति नहीं दी जा सकती। राज्य के प्राइमरी स्कूलों में ‘विद्या सहायक’ की नियुक्ति के मामले में गुजरात सरकार की याचिका पर कोर्ट सुनवाई कर रही थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से उन सभी नियमों की जानकारी मांगी है, जिसके तहत इन एड हॉक टीचरों की भर्ती की गई है। साथ ही उसने स्थायी टीचरों और अस्थायी की विस्तृत जानकारी वाला तुलनात्मक चार्ट भी मांगा है, जिसमें उनकी शैक्षिक योग्यता और वेतन की जानकारी शामिल हो।
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बेंच ने कहा, ‘प्रशिक्षित टीचरों द्वारा ही शिक्षा दी जानी चाहिए। आपको विद्या सहायक से संबंधित चयन प्रक्रिया, शैक्षिक योग्यता, कार्यकाल और अन्य जानकारी विस्तृत रूप से देनी होगी।’ सोमवार को हुई अंतिम सुनवाई में सर्वोच्च अदालत ने प्राइमरी स्कूलों में एड हॉक नियुक्तियों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इस तरह की नीतियों से पूरा शिक्षा तंत्र और देश का भविष्य बर्बाद हो रहा है। बेंच ने कहा, ‘आप इस तरह की नीतियों को कैसे लागू कर सकते हैं जबकि भारतीय संविधान में अनुच्छेद-21ए मौजूद है। यह चौंकाने वाला है। यूपी में इस तरह की नियुक्तियां हो रही हैं। ये शिक्षा सहायक शिक्षा शत्रु हैं।’