फर्रुखाबाद: पुरानी परंपरा है कि निकासी (बारात का लड़की के घर प्रस्थान) से पहले दूल्हा कुएं की पूजा करता है। दीगर मांगलिक कार्यों के दौरान भी यह पूजन होता है। कुएं तो पाट दिए गए लेकिन परंपरा बची हुई है। इसके निर्वाह का लोगों ने नायाब रास्ता तलाश लिया है। कुएं की जगह अब हैंडपंप की पूजा की जा रही है।
[bannergarden id=”8″]
कहीं-कहीं तो लोग पानी भरी बाल्टी, घड़ा या लोटा पूजवा कर परंपरा का निर्वाह रहे हैं। सहालग के इन दिनों में यह दृश्य घुड़चढ़ी से पहले शादी वाले घरों में देखे जा सकते हैं।कभी कुएं ही पेयजल का स्रोत होते थे। ये जीवन से इतना जुड़े थे कि इन्हें पूजन की परंपरा पड़ी। ये भूगर्भीय जलस्तर बनाए रखने में मददगार भी थे। जिले में कभी 25 हजार कुएं हुआ करते थे।
[bannergarden id=”11″]
कई तो सैकड़ों साल के इतिहास के साक्षी थे। देखरेख के अभाव में वे खुद इतिहास हो रहे हैं। 1976 के बाद से नया बनना तो दूर, कुओं की देखरेख भी बंद हो गई। अब हाल यह है कि कुएं की जगह प्रतीक के रूप में बाल्टी-लोटा पूजे जा रहे हैं।