लखनऊ : सतर्कता विभाग ने सरकार की प्राथमिकता पर आय से अधिक सम्पत्ति व भ्रष्टाचार के मामले में सिर्फ डेढ़माह के भीतर मायावती सरकार के नौ मंत्रियों के खिलाफ प्रारंभिक जांच पूरी कर ली, लेकिन विभाग के पास करीब चार सौ जांच लंबित हैं। विभाग की इस कछुआ चाल से भ्रष्टाचार पर अंकुश लग पाने की बात बेमानी लगती है। सूबे की सरकारें सतर्कता जांच मामले में गंभीर नहीं हैं। तभी तो 52 मामलों में आरोप पत्र दाखिल करने की अर्जी अरसे से शासन में धूल फांक रही है।
करीब दस वर्ष पूर्व राज्य चर्म विकास निगम में तैनाती के दौरान नजदीकी लोगों को लाभ पहुंचाने के आरोप में आइएएस अधिकारी तुलसी गौड़ के खिलाफ सतर्कता जाच शुरू हुई। जाच पूरी होकर शासन को भेज दी गयी, लेकिन अभी तक आरोप पत्र दाखिल नहीं हो सका है। वाणिज्य कर संयुक्त आयुक्त गोपाल कृष्ण गोयल पर आय से अधिक सम्पत्ति के आरोप हैं। 30 अक्टूबर 2009 को उनके घर में कई लाख रुपये की अघोषित सम्पत्ति मिली। जांच पूरी हो गयी, लेकिन उनके खिलाफ अभियोग नहीं चला। एटा में पुलिस कप्तान रहे आइपीएस एसपी मिश्र पर अनियमितताओं के आरोप में 2001 में सतर्कता जाच शुरू हुई। मिश्र सेवानिवृत्त हो गये, लेकिन जांच का हश्र क्या हुआ, यह बताने को कोई तैयार नहीं है। ऐसी अनगिनत जांच हैं जो अंजाम तक नहीं पहुंची।
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वित्तीय वर्ष में 124 जांचों का निपटारा : सतर्कता विभाग को वर्ष 2012-13 में 124 जांच मिली। इस वर्ष कुल 152 जांच का विभाग ने निस्तारण किया। इसके बावजूद कई वर्ष से 392 जांच लंबित हैं। विभागीय अफसर इस मसले पर कोई बात नहीं करना चाहते हैं। उनकी अपनी अलग समस्याएं हैं। एक तरफ स्टाफ की भारी कमी और दूसरी तरफ संसाधनों का टोटा है।
सतर्कता विभाग में 80 प्रतिशत पद रिक्त : सतर्कता विभाग में 80 प्रतिशत पद रिक्त हैं। इस विभाग में विवेचना का कार्य पुलिस इंस्पेक्टर करते हैं। यहां 178 पदों का नियतन है, लेकिन सिर्फ 40 इंस्पेक्टर तैनात हैं। इनमें भी सात स्थानांतरणाधीन हैं। पुलिस उपाधीक्षक के कुल 51 पदों का नियतन है, लेकिन सिर्फ पांच की ही तैनाती है। विभाग के कई निदेशकों के शासन से संसाधन मांगने के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला। अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि 2011 में यहां 78 इंस्पेक्टर तैनात थे। दो साल में उनमें से 38 घट गये।
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सतर्कता विभाग के हमेशा बंधे रहे हाथ : विभाग में निदेशक रहे पूर्व डीजीपी श्रीराम अरुण, जीएल शर्मा व अतुल जैसे अधिकारियों ने समय समय पर इसको अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए शासन को चिट्ठी पत्री भेजी, लेकिन कोई कारगर कार्रवाई नहीं हुई। सबसे गौरतलब यह कि बिना शासन की अनुमति के विभाग किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई और जांच नहीं कर सकता है। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि खुद के अभिसूचना संकलन के आधार पर कार्रवाई का अधिकार मिले तो भ्रष्टाचार पर बहुत हद तक अंकुश लग जायेगा।