धड़ल्‍ले से पनपता ईमानदारी का खेल सट्टा: जहां हस्तलिपि ही हस्ताक्षर है

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FARRUKHABAD : जनपद में सट्टा कारोबार अब नगर में ही नहीं ग्रामों में भी अपने पैर पसार चुका है। सट्टा के मकड़जाल में पड़कर हजारों गरीबों के चूल्हे ठंडे पड़ गये हैं। सरे शाम से ही सट्टे के फड़ चालू हो जाते हैं। आप इसे बुरा कहें या भला परंतु होता यह बहुत ईमानदारी से है। चाहे मामला ग्राहक के भुगतान का हो या पुलिस की यकजाई का। सट्टा से जुड़े कारोबारियों के मुताबिक उनकी विश्वसनीयता की बात करें तो इस कारोबार में हस्ताक्षर या किसी सिक्योरिटी की कोई satta parchiआवश्यकता नहीं है। इसमें सट्टा कारोबारी द्वारा सटोरिये को दी जाने वाली पर्ची ही काफी है। जिस पर हस्ताक्षर भी नहीं होते। यह पर्ची देखकर हस्तलिपि मिलान के आधार पर ही सुबह सटोरिये का पेमेंट भी कर दिया जाता है।

वैसे भी यदि जानकारों की मानें तो जनपद में सट्टा कारोबार का लम्बा इतिहास है। पहले के दिनों में यह कारोबार कुछ गिने चुनी जगहों पर दबंगों द्वारा कराया जाता था। लेकिन सट्टे की लत भोले भाले नागरिकों के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में लगती गयी और सट्टा कारोबार अपने पैर पसारता चला गया। आज स्थिति यह है कि जनपद में सट्टा का कारोबार प्रति दिन लाखों करोड़ों में हो रहा है। जिससे एक तरफ सट्टा माफिया, पुलिस व इससे जुड़े अन्य कई दबंगों की जेबें तो भर रहीं हैं लेकिन दूसरा जो सट्टा लगाने वाला मजदूर व कमजोर वर्ग है वह बखूबी लुट रहा है। 1 के 80 करने के लोभ में मजदूर घर पर आटा तेल ले जाने के बजाय मजदूरी के पैसे सट्टा कारोबार में लगा देते हैं। जिससे आये दिन ऐसे सैकड़ों की संख्या में घर हैं जहां झगड़े की स्थिति बनी रहती है और शाम को उनके बच्चों को भूखों ही सोना पड़ता है।

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पुलिस की भूमिका भी इस सट्टा कारोबार में सराहनीय है। यदि उच्चाधिकारी ने किसी तरह से छापेमार कार्यवाही की बात भी कह दी तो यही पुलिसकर्मी सट्टा माफियाओं को सूचना भी पहुंचाते हैं और यह सूचना कोई फ्री में नहीं, उसकी भी मोटी रकम वसूली जाती है। सट्टा माफियाओं से प्रति माह वसूली जाने वाली रकम का पैसा पुलिस विभाग में किस कदर बंदरबांट किया जाता है इसकी यदि हकीकत की तह तक पहुंचा जाये तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आते हैं। जिसमें सिर से लेकर पांव तक पुलिस बिंधी हुई है। कोई भी उच्चाधिकारी भी इस कारोबार पर हाथ डालने की नहीं सोचता। जो भी हो इस सट्टा कारोबार से जनपद में न जाने कितने मजदूर व गरीबों के बच्चों को भूखे पेट ही सोना पड़ता है और अधिकारी हाथ पर हाथ रखकर उनकी बर्बादी का जश्न मना रहे हैं।