दिल्ली: आतंकवादी देविंदर पाल सिंह भुल्लर की मौत की सजा सुप्रीम कोर्ट द्वारा भले ही बरकरार रखी हो, परंतु पंजाब के बैसाखी मेले में उसकी फोटो छपी टीशर्टों की धूम है। इस फैसले के बाद भुल्लर की पत्नी नवनीत कौर ने कहा था कि अब यह लड़ाई हमारी कौम की हो गई है। भुल्लर की फांसी पर तत्काल रोक लगाने के लिए सिग्नेचर कैंपेन भी चलाया जा रहा है। परंतु क्षेत्रीय और धार्मिक संकीर्णता की इस खतरनाक प्रवृत्ति का अंत कहां होगा। यह न केवल भारत के संघीय ढांचे के लिये खतरनाक है, बल्कि लोकतंत्र के लिये भी। मजे की बात है कि राष्ट्रवाद और मूल्यआधारित राजनीति का दम भरने वाले अनेक राजनैतिक दल खामोश हैं।
प्रकाश सिंह बादल फरवरी में राष्ट्रपति से मिले और बलवंत सिंह राजोआना को माफी देने का अनुरोध किया। उनके पीछे पंजाब का एक बड़ा तबका है जो मानता है कि बलवंत सिंह ने बेअंत सिंह की हत्या की साजिश रचकर ठीक किया था। इसी तरह जम्मू-कश्मीर के नेताओं और जनता के एक बड़े हिस्से का मानना है कि संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु को फांसी नहीं दी जानी चाहिए। तमिलनाडु विधानसभा तो एक प्रस्ताव तक पास कर चुकी है कि राजीव गांधी के हत्यारों को मृत्युदंड न दिया जाए। स्पष्ट है कि ये तीनों मामले खतरनाक होती क्षेत्रीय और धार्मिक संकीर्णता की उपज हैं। परंतु कल भगवान न करे, कोई इंसान प्रकाश सिंह बादल या सुखबीर बादल को गोली मार दे तो क्या अकाली उसको भी माफ करने की मांग करेंगे? इसी तरह कल मुफ्ती मुहम्मद सईद या मेहबूबा मुफ्ती की कोई हत्या कर दे तो क्या पीडीपी वाले उसकी भी रिहाई चाहेंगे? और यही सवाल तमिलों के लिए भी कि क्या जयललिता या करुणानिधि के हत्यारे के प्रति भी उनके मन में यही दया की भावना होगी? जाहिर है कि मौका आने पर अपने प्रिय नेता के हत्यारों को माफी देना तो दूर, वे उससे जुड़े समुदाय तक को नहीं बख्शेंगे। इंदिरा गांधी की हत्या के मामले में हम देख चुके हैं कि सिखों के साथ तब कैसा सलूक हुआ था।
यह माफी और दया का मामला तभी तक ठीक लगता है, जब तक कि अपने पर नहीं बीतती। जब अपने किसी की जान छीन ली जाती है, तभी पता चलता है कि कातिल की गोली कितनी बेरहम होती है और ऐसे बेरहम व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का रहम बरतना कितना मुश्किल होता है। स्टेन्स के परिवार ने दारा सिंह को माफ कर दिया लेकिन दारा सिंह को अपने किए का पछतावा नहीं है, इसलिए उसे माफ नहीं किया जाना चाहिए। यही बात बलवंत सिंह राजोआना के साथ है। न बलवंत को अपने किए का पछतावा है न अफजल गुरु को था। अगर इसके बाद भी कोई किसी कातिल के लिए माफी की मांग करता है तो उससे यही सवाल पूछा जाना चाहिए – कल तुम्हारे बाप या भाई या बीवी या शौहर या बेटे या बेटी को कोई मार देगा तो क्या तुम उसके लिए माफी मांग सकोगे?