फर्रुखाबाद: अपने अमानवीय कारनामों के लिये चर्चित यूपी पुलिस के सीने पर उसके काले कारनामें का एक और तमगा जड़ गया है। चार माह पूर्व एक संभ्रांत परिवार के एक युवक को 45 लाख रुपये की हेरोइन के साथ गिरफ्तार करने वाली इनामी एसओजी टीम के मुंह पर विधि विज्ञान प्रयोगशाला के निदेशक ने जोरदार तमांचा जड़ा है। रसायनिक विश्लेषण में हेरोइन के नाम भेजे गये सेंम्पुल में नींद की गोलियों का पाउडर निकला है। जांच रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पहुंच गयी है। विगत 28 नवंबर को खुलासे के तौर पर बाकायदा तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नीलाब्जा चौधरी ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस कारनामें को अंजाम देने वाली एसओजी टीम की न सिर्फ पीठ ठोंकी थी, बल्कि उनको पुरस्कृत भी किया था। अब सवाल यह उठता है कि अव्वल तो, यदि वास्तव में हेरोइन पकड़ी गयी थी, तो वह कहां चली गयी??? दूसरा सवाल यह है कि क्या अब इस हेरोइन को गायब करने वालों से 45 लाख रुपये की वसूली किस प्रकार की जायेगी??? तीसरा सवाल यह है कि केवल हेरोइन के शक के आधार पर एक संभ्रांत परिवार की पुश्तैनी इज्जत को तार तार करने वालों के विरुद्ध पुलिस अधीक्षक और न्यायलय क्या कार्रवाई करेंगे???
शासन के आदेश पर हाल ही में भले ही एसओजी समाप्त कर दी गयी हो परंतु पुरानी एसओजी टीम के रणबांकुरे आज भी विभाग में मौजूद हैं। पूर्व एसओजी प्रभारी नन्हें लाल तो अपने कई कारनामों के बावजूद शायद अपनी विलक्षण प्रतिभाओं चलते ही अब नव गठित क्राइमब्रांच के सम्मानित सदस्य भी हैं। यहां हम तत्काली अपर पुलिस अधीक्षक वीके मिश्रा की एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं। यह रिपोर्ट ज्यादा पुरानी नहीं है। पिछले साल की ही है। जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से निष्कर्ष निकलाला गया था ‘’ अत: उपरोक्तानुसार साक्ष्य विश्लेषण से स्पष्ट है कि वर्तमान में एसओजी की टीम की आम छवि जनता में अच्छी नहीं है। और एसओजी में नियुक्त कर्मचारी जिसमें आरोपी सभी कर्मचारी गणों की दुबारा नियुक्ति हुई है, और सम्बद्धता पर कार्यरत हैं। जनता द्वारा की जा रही शिकायतों से पुलिस की छवि धूमिल होती है, और गलत संदेश जाता है। अत: जनहित/न्यायहित में वर्तमान एसओजी को भंग किये जाने एवं योग्य एवं स्वच्छ छवि के कर्मचारियों की नयी एसओजी गठित किये जाने की संस्तुति की जाती है।’’
कतिपय कारणों से एएसपी की यह रिपोर्ट विभाग में धूल फांकती रही और एसओजी जिले में दनदनाती रही। इसी एसओजी के भरोसे तत्कालीन पुलिस अधीक्षक महोदय को कई बार मीडिया के सामने नजरें उठाने और अपनी पीठ थपथपाने का मौका मिला। एसा ही एक मौका विगत 28 नवंबर को भी आया था। एसओजी टीम ने जनपद के इतिहास में तबतक का सबसे बड़ा कारनामा किया था। कुल 45 लाख रुपये की लूट में दो मुल्जिमो को गिरफ्तार कर लिया था। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नीलाब्जा चौधरी ने इसके लिये एसओजी टीम को पुरस्कृत करने की भी घोषणा मीडिया के सामने की थी। परंतु इनामी कार्रवाई पर अपनी पीठ ठोंक रही पुलिस के मुंह पर सरकारी विधि विज्ञान प्रयोगशाला ने वह तमांचा जड़ा कि उनकी आंखों के आगे सितारे नाच गये। प्रयोग शाला के संयुक्त निदेशक की ओर से जारी पत्र में स्पष्ट लिखा है कि हेरोइन के नाम भेजे गये पाउडर में केवल ‘डाइजीपॉम’ निकला है। अपने पाठकों हम यहां बता दें कि ‘डाइजीपॉम’ सस्ती और आम तौर बिकलने वाली नींद की गोलियों जैसे काल्मपोज का प्रमुख अवयव होता है।
विधि विज्ञान प्रयोग शाल की इस रिपोर्ट से कई सवाल खड़़े हो गये हैं। जिसका जवाब पुलिस को ढूंडने में काफी मुश्किले आ सकती हैं। पहला सवाल तो यह है कि अब 45 लाख रुपये की हेरोइन की कीमत वसूली किससे की जायेगी। जाहिर है कि पुलिस के पास सिवाये यह कहने के कोई चारा नहीं होगा कि जांच के बिना उस पाउडर को तो हमने वही माना जो पकड़े गये मुल्जिमों ने बताया। जाहिर है कि पुलिस कस्टडी में तो मुल्जिम से यदि कहा जाता तो उसे कोहिनूर हीरे का पाउडर भी कह सकता था। परंतु बिना प्रयोगशाला की जांच रिपोर्ट आये पुलिस अधीक्षक महोदय को अपनी पीठ ठोंकने और एसओजी को पुरस्कृत करने की क्या जल्दी थी। एसओजी की कार्यप्रणाली के बारे में लिखित रिपोर्ट उप्लब्ध होने के बावजूद किसी संभ्रांत परिवार की पुश्तैनी इज्जत के साथ खिलवाड़ का हक किसको और क्यों था? यही सवाल अब पीड़ित के परिजन पूंछ रहे हैं। इस मामले में मामले को लखनऊ तक ले जाने व न्यायलय में अलग से मुकदमा करने की तैयारी है।