नई दिल्ली। सियासी खींचतान और आरोप-प्रत्यारोप में उलझे राजनेता क्या कभी देश को आगे ले जाने के बारे में गंभीरता से सोचते हैं? आम आदमी की बातें करने वाले नेता आम आदमी की वाकई कितनी चिंता करते हैं? देश के बड़े सियासी दिग्गजों के विजन को सामने लाने के लिए नेटवर्क-18 ने थिंक इंडिया डायलॉग की पहल की है और इसका आगाज हुआ गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ। थिंक इंडिया डायलॉग में नरेंद्र मोदी ने 10 अहम बातें साझा की हैं। मोदी ने अपने भाषण में कहा किः-
-भारत में चुनावी राजनीति हावी है।
-सरकार की निर्णय क्षमता दबाव की वजह से प्रभावित होती है।
-लोगों का सरकार पर से भरोसा घटा है।
-शासन से भरोसा खत्म होना बड़ा खतरा है।
-ये भरोसा पारदर्शिता में आई कमी के चलते घटा है।
-सत्ता के केंद्रीकरण की वजह से विश्वास घटा है।
-भरोसा पैदा करने के लिए व्यवस्था विकसित करनी होगी।
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-चाहे तो व्यवस्था बदली जा सकती है।
-संतुलित सरकार सही शासन कर सकती है।
-डिलिवरी सिस्टम में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाना होगा
1- सरकार की व्यवस्थाओं से भरोसा उठ जाना बहुत बड़ा खतरा है। जब न्याय पर से भरोसा उठ जाए तो व्यक्ति अलग रास्ते खोजता है। इससे समाज की परंपरा का deterioration भी होता है, उनमें गिरावट आने लग जाती है।
2. हमारे घर में 20 साल पुराना स्कूटर हो, उसको बड़ी सफाई करके रखते हैं, लेकिन हम कभी बस में जा रहे होते हैं और 2-3 घंटे का सफर होता है तो सीट पर बैठे धीरे-धीरे बस की सीट की रेक्सीन में उंगली डालते हैं। और स्टेशन पर उतरते हुए दो इंच तक उसमें गड्ढा कर देते हैं। क्योंकि हमें ये लगता है कि ये बस हमारी नहीं है, अपनापन महसूस नहीं होता है। ये सरकार के प्रति अविश्वास है।
3. देश में अब पीपीपी मॉडल नहीं चलेगा। अब People-public-private partnership (P4) model की जरूरत है। जिसमें लोगों की भागीदारी हो, लोगों को बोलने का मौका देना चाहिए।
4. हमारे यहां साबरमती की चर्चा होती है। अहमदाबाद के लोगों का कहना है मोदी ने तो अच्छा काम कर दिया। पर हमने उसका भी फायदा उठाया। पानी के कारण लोगों के बिल कम हुआ। ट्यूबवेल के पानी में भी शुद्धि हुई। बीमारी खत्म हुईं।
5. मैं संतुलित सरकार के पक्ष में हूं, सत्ता में आना मेरा प्राथमिकता नहीं है। भारत में चुनावी राजनीति हावी है इसलिए राजनेता हमेशा दबाव में रहते हैं। परंतु विकास करना चुनाव का मोहताज नहीं है।
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6. एक शख्स अपने दोस्त को पहले मैसेज करता है लेकिन इस बात को लेकर वो उधेड़बुन में रहता है कि उसका मैसेज मिला कि नहीं, और अगर मिला भी तो उसने पढ़ा कि नहीं, आखिरकार वो फोन कॉल करके ही मैसेज पहुंचने की बात पूछता है। इससे साफ हो जाता है कि लोगों को ऐसे सिस्टम पर पूरा विश्वास नहीं बन पा रहा है। सिस्टम को विश्वास के लायक बनाना होगा।
7. हम चाहे तो व्यवस्थाओं को विकसित कर सकते हैं। हर ह्यूमन के लिए ह्यूमन राइट कमीशन है ना। ह्यूमन राइट कमीशन की अथॉरिटी को ताकत देने के बजाय वूमन कमीशन, लेबर कमीशन, एससी/एसटी कमीशन बना दी गईं। अब माइनोरिटी की महिला ह्यूमन राइट कमीशन के पास जाएगी तो वो कहते हैं माइनोरिटी कमीशन जाओ, क्यों क्या वो ह्यूमन नहीं है।
8. जब हम ट्रैफिक सिग्नल से गुजरते हैं तो वहां एक ग्रीन लाइट और एक रेड लाइट होती है। मैं मानता हूं कि ये ट्रैफिक लाइट सरकार है। लेकिन जब लोग नहीं मानते तो एक पुलिसवाले को खड़ा कर दिया जाता है। यानी हम व्यवस्था को फॉलो नहीं करते तो व्यवस्थाएं बढ़ जाती है। इसलिए नागरिक धर्म भी बहुत जरूरत है।
9. एक सरकारी स्कूल है, वो सरकार का है। पता नहीं कैसा होगा मास्टर कैसा होगा, तो हम प्राइवेट स्कूल जाते हैं।
10. टेक्नोलॉजी हमें गुड गवर्नेंस के लिए बहुत बड़ा ताकतवर साधन मिली है। हम अपने डिलीवरी सिस्टम को ठीक कर सकते हैं। भरत सरकार ने बाबुओं की accountability तय करने के लिए चार्टर बनाया है। हमने भी गुजरात में किया है। हम गुजरात में चाहते हैं कि गैस पाइपलाइन से गैस देंगे। लेकिन केन्द्र सरकार ने मना कर दिया। मुझे सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। ये जो centralization of power इसने पूरे डिलीवरी सिस्टम को फेल कर दिया है। ये conflict है।