सीओ हत्‍याकांड में उलझी जांच की गुत्‍थी, सीबीआई भी सवालों घेरे में

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CO Kunda Zia ul haqलखनऊ : प्रतापगढ़ के बलीपुर में सीओ कुंडा जिया उल हक सहित तीन लोगों की हत्या की गुत्थी बजाय उलझती चली जा रही है। इसकी जांच कर रही सीबीआइ का सारा दबाव मृत प्रधान नन्हें यादव के पुत्र बबलू पर है। सीबीआइ ने बबलू तथा उसके भाई डबलू से कई बार हाथ में डंडा लेकर डेमो करा चुकी है। उत्तर प्रदेश से जुड़े कई बड़े मामलों में एजेंसी अभी तक मुकाम तक नहीं पहुंच पाई है। हो सकता है कि यह काम के दबाव की अधिकता हो, लेकिन इस एजेंसी कई प्रकरणों में दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप भी लगने लगा है।

बबलू ने बताया कि घटना के दिन वह अपने मामा के यहां था। जब उसे पता चला कि उसके पिता नन्हें यादव की हत्या हो गई है तो वह सीधे घर आया। घर के दरवाजे पर उसके पिता का शव रखा था और भीड़ घर के पीछे की तरफ जा रही थी। इस बीच किसी ने आकर बताया कि उसके चाचा की भी हत्या हो गई। जब वह गया तो कुछ लोग सीओ को लाठी डंडे से पीट रहे थे। देखने में यही लग रहा था कि उनकी मौत हो चुकी है। बबलू ने कहा कि हमने जो देखा वह सब सीबीआइ टीम को बता दिया, लेकिन इसके बाद भी सीबीआइ टीम बार-बार सीओ की हत्यारोपी होने का दबाव बना रही है।

पूछताछ से आजिज आए प्रधान के परिवारीजन का कहना है कि जो बात पहली बार बताई गई है, वही हर बार बताया जा रहा है। फिर भी अधिकारी वही सवाल दुहरा रहे है। तमाम लोगों के नाम एफआइआर में होने के बाद भी प्रधान परिवार ही सीबीआइ के निशाने पर है। प्रधान के परिवारवालों का कहना है सीबीआइ उनकी कोई बात मानने को तैयार नहीं है। हत्याकांड की हकीकत उगलवाने को पहले भगोड़े पुलिस कर्मियों और नन्हे गौतम से कई चक्र में पूछताछ की गई। उसके बाद जांच की दिशा प्रधान परिवार पर ही है। घटनास्थल पर प्रधान के भाइयों फूलचंद्र, पवन, सुधीर, बेटे बबलू, डब्लू की मौजूदगी तस्दीक करने के बाद सीबीआइ की जांच इससे आगे नहीं बढ़ रही है। पखवारे भर से चल रही पूछताछ से प्रधान के परिवारीजन आजिज आ गए है। प्रधान के परिवारीजन का कहना है कि सीबीआइ जो भी करना चाहती हो, जल्दी करे।

छोटी-बड़ी घटनाओं की जांच के बढ़ते दबाव ने जांच एजेंसी सीबीआइ के लिए खासी मुसीबत कर दी है। मसलन खाद्यान्न घोटाले की जांच भी सीबीआइ के पास है। वह 2010 से इस घोटाले की जांच कर रही है। यह संयोग है कि पूर्व मंत्री राजा भैया के एक करीबी ने घोटाले के लिए राजा भैया को ही दोषी माना है क्योंकि यह घोटाला उस वक्त का है जब राजा भैया ही खाद्य विभाग के मंत्री हुआ थे लेकिन सीबीआइ ने अभी तक उनसे पूछताछ करने की जरूरत नहीं समझी है। अब देखने वाली बात होगी कि कुंडा कांड की जांच कर रही सीबीआइ कितनी जल्दी किसी निष्कर्ष तक पहुंचती है।

 

सीबीआइ ने पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को सलाखों के पीछे भेज दिया। पर बाबू सिंह कुशवाहा के लगातार गंभीर आरोप लगाने के बाद भी पूर्व स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री अनंतकुमार मिश्रा अंटू के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। सीबीआइ ने पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा समेत 20 लोगों को गिरफ्तार कर मामले में कई आरोप पत्र दाखिल किये हैं, लेकिन अभी जांच नतीजे पर नहीं पहंची है। लंबे समय के बाद भी कई नौकरशाहों, पूर्व मंत्री और विधायकों की भूमिका साफ नहीं हो सकी है।

एनआरएचएम घोटाले से जुड़े लखनऊ के डबल सीएमओ मर्डर केस में भी सीबीआइ कुछ खास नहीं कर सकी। एसटीएफ की राह पर ही लकीर की फकीर बनकर रह गयी, जबकि लखनऊ जिला कारागार में पूर्व डिप्टी सीएमओ डा.वाइएस सचान की मौत की जांच क्लोज करने से भी सीबीआइ को फजीहत करानी पड़ी। बांदा में तत्कालीन बसपा विधायक के एक बालिका के साथ दुष्कर्म की जांच में भी सीबीआइ नया रहस्योद्घाटन नहीं कर सकी, जबकि लखीमपुर खीरी के निघासन थाने में दुष्कर्म के बाद मारी गयी नाबालिग लड़की की जांच कछुए की चाल जैसी हो गयी है। लखनऊ व वाराणसी में 2005 से 08 के बीच एयरपोर्ट के एप्रन और रनवे निर्माण में करोड़ों का घोटाला हो या मैनपुरी में 2008 से 2011 के बीच मिड डे मील घोटाला, इन सबकी भी जांच पूरी नहीं हो सकी है। बार्डर मैनेजमेंट सड़क घोटाले की जांच सीबीआइ के हवाले है, लेकिन अब तो यह पता ही नहीं चल पा रहा है कि यह जांच हो भी रही है या इसे बंद कर दिया गया है।

बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के फर्जी पासपोर्ट मामला, ट्रोनिका सिटी घोटाला, हमीरपुर का नीरज गुप्ता हत्याकाण्ड और स्मोक लेस फ्यूल कोयला घोटाला में भी सीबीआइ ने रिपोर्ट तो शामिल कर दी है, लेकिन यह जांच भी अभी तक अधर में ही है।